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श्रमण आवश्यक सूत्र - पाँच पदों की वंदना
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ऐसे श्री सिद्ध भगवन्तजी महाराज आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो हे सिद्ध भगवन्! मेरा अपराध क्षमा करिये। हाथ जोड़ मान मोड़ शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से १००८ बार वन्दना नमस्कार करता हूँ।
तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि वंदामि णमंसामि सक्कारेमि, सम्माणेमि, कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि मत्थएण वंदामि।।
आप मांगलिक हो, उत्तम हो, हे स्वामिन् ! हे नाथ आपका इस भव, परभव, भवभव में सदाकाल शरण हो।
विवेचन - सिद्धों के आठ गुण - १. अनन्त ज्ञान - ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से। २. अनन्त दर्शन - दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से। ३. अनन्त सुख - वेदनीय कर्म के क्षय से। ४. वीतरागता - मोहनीय कर्म के क्षय से। ५. अक्षय स्थिति - आयुष्य कर्म के क्षय से। ६. अमूर्तिक - नाम कर्म के क्षय से। ७. अगुरुलघु - गोत्र कर्म के क्षय से। ८. अनन्त आत्म सामर्थ्य - अन्तराय कर्म के क्षय से।
सिद्धों के १४ प्रकार - १. स्त्रीलिङ्ग सिद्ध २. पुरुषलिङ्ग सिद्ध ३. नपुंसकलिङ्ग । सिद्ध ४. स्वलिङ्ग सिद्ध ५. अन्य लिङ्ग सिद्ध ६. गृहस्थलिङ्ग सिद्ध ७. जघन्य अवगाहना ८. मध्यम अवगाहना ९. उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध १०. ऊर्ध्वलोक ११. अधोलोक १२. तिर्यक्लोक में होने वाले सिद्ध १३. समुद्र एवं १४. सभी पानी के स्त्रोतों (नदी तालाब आदि) से होने वाले सिद्ध। (उत्तराध्ययन सूत्र अ० ३६ गाथा ४९-५०) __ सिद्धों के पन्द्रह भेद - इनका विवेचन इस प्रकार हैं -
सिद्ध होने के पश्चात् सभी आत्माएं समान होती है। उनमें कोई भेद नहीं होता। किन्तु सिद्धों की सांसारिक अवस्था (पूर्वावस्था) की दृष्टि से उनमें पन्द्रह भेद माने गये हैं -
१. तीर्थ सिद्ध - साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ की स्थापना के पश्चात् जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की। जैसे गौतम स्वामी आदि।
२. अतीर्थ सिद्ध - चार तीर्थ की स्थापना के पहले जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की। जैसे मरुदेवीमाता। तीर्थ विच्छेद के समय सिद्ध होने वाले भी अतीर्थसिद्ध होते हैं।
३. तीर्थंकर सिद्ध - जिन्होंने तीर्थंकर की पदवी प्राप्त करके मुक्ति प्राप्त की। जैसे भगवान् ऋषभदेव आदि २४ तीर्थंकर ।
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