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____ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
३१. आहितविशेषत्व - दूसरे मनुष्यों की अपेक्षा वचनों में विशेषता होने के कारण श्रोताओं को विशिष्ट बुद्धि प्राप्त होना।
३२. साकारत्व - वर्ण, पद और वाक्यों का अलग-अलग होना। ३३. सत्त्वपरिगृहीतत्व - भाषा का ओजस्वी प्रभावशाली होना।
३४. अपरिखेदित्व - उपदेश देते हुए थकावट अनुभव न करना। - ३५. अव्युच्छेदित्व - जो तत्त्व समझना चाहते हैं उनकी सम्यक् प्रकार से सिद्धि न हो तब तक बिना व्यवधान के उसका व्याख्यान करते रहना। .
जघन्य बीस तीर्थकर उत्कृष्ट १६० तथा १७० की गणना - एक महाविदेह में ३२ विजय हैं। उनमें से प्रत्येक ८ विजयों के पीछे एक-एक तीर्थंकर होते ही हैं, अतः एकनिदिह में जघन्य चार तीर्थंकर होते हैं। पांच महाविदेह की अपेक्षा २० तीर्थंकर होते हैं। जब प्रत्येक विजय में एक-एक तीर्थंकर हो जाय तो कुल १६० तीर्थंकर (५ महाविदेह की अपेक्षा) हो जाते हैं। ५ भरत, ५ ऐरावत में भी यदि उस समय तीर्थंकर हो जाय तो कुल १७० तीर्थकर हो जाते हैं। ३. दूसरे पद श्री सिद्ध भगवान् महाराज पन्द्रह भेदे अनन्त सिद्ध हुए हैं।
खपाकर मोक्ष पहुँचे हैं।
तीर्थ सिद्ध २. अतीर्थ सिद्ध ३. तीर्थंकर सिद्ध ४. अतीर्थंकर सिद्ध ५.यबुद्ध सिद्ध ६. प्रत्येक बुद्ध सिद्ध ७. बुद्धबोधित सिद्ध ८. स्त्रीलिङ्ग सिद्ध ९. पुरुषलिङ्ग सिद्ध १०. नपुंसकलिङ्ग सिद्ध ११. स्वलिङ्ग सिद्ध १२. अन्यलिङ्ग सिद्ध १३. गृहस्थलिङ्ग सिद्ध १४. एक सिद्ध १५. अनेक सिद्ध। जहाँ जन्म नहीं, जरा नहीं, मरण नहीं, भय नहीं, रोग नहीं, शोक नहीं दुःख नहीं, दारिद्र्य नहीं, कर्म नहीं, काया नहीं, मोह नहीं, माया नहीं, चाकर नहीं, ठाकर नहीं, भूख नहीं, तृषा नहीं, ज्योत में ज्योत विराजमान सकल कार्य सिद्ध करके चौदह प्रकारे पन्द्रह भेदे अनन्त सिद्ध भगवंत हुए हैं। १. अनन्त ज्ञान २. अनन्त दर्शन ३. अनन्त सुख ४. वीतरागता ५. अक्षय स्थिति ६. अमूर्तिक ७. अगुरुलघु ८. अनन्त आत्म सामर्थ्य, ये आठ गुण करके सहित हैं।
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