________________
श्रमण आवश्यक सूत्र - पाँच पदों की वंदना
करणसत्तरी के ७० भेद (उत्तरगुण) , पिण्ड विसोहि समिई, भावणा पडिमा इंदिय णिग्गहो य। पडिलेहण गुत्तीओ अभिग्गहं चेव करणं तु॥
४ प्रकार की पिण्डविशुद्धि (आहार, शय्या, वस्त्र, पात्र), ५ समिति, १२ भावना, १२ साधु प्रतिमा, ५ इन्द्रिय निग्रह (विजय), २५ प्रकार का प्रतिलेखन, ३ गुप्ति, ४ अभिग्रह (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव) ये सब मिलाकर कुल ७० भेद हुए।
सारए - विस्मृत पाठ का स्मरण करना। वारए - पाठ की अशुद्धि का निवारण करना। धारए - नया पाठ धराने वाले (सिखाने वाले) या स्वयं रहस्यों को धारण करने वाले। सात नय, चार निक्षेप तथा चार प्रमाण का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है - सात नय - आचार्य उमास्वाति ने तत्वार्थ सूत्र में कहा है - प्रमाणनयैरधिगमः।
प्रमाण और नय से वस्तु का वास्तविक ज्ञान होता है। प्रत्येक वस्तु में अनन्त धर्म(पर्याय) रहे. हुए हैं। उन सबको जो एक साथ जाने उसको 'प्रमाण' कहते हैं। उस अनन्त धर्मात्मक वस्तु के किसी एक अंश (पर्याय) को मुख्य रूप से जाने और दूसरे अंशों में (पर्यायों में) उदासीनता रखे उसको 'नय' कहते हैं। इस नय के दो भेद हैं - व्यास नय (विस्तृत नय)
और समास नय (संक्षिप्त नय)। • नय के .यदि विस्तार से भेद किये जाय तो अनन्त भेद हो सकते हैं। क्योंकि प्रत्येक वस्तु में अनन्त धर्म रहे हुए हैं और एक-एक धर्म को जानने वाला एक-एक नय होता है। जैसा कि कहा है. - "जावडया वयणपहा. तावडया चेव हति नयवाया"
अर्थात् - जितने बोलने के तरीके हैं उतने ही नय होते हैं इसलिए व्यास नय (विस्तृत नय) के अनेक भेद हैं।
समास नय (संक्षिप्त नय) के दो भेद हैं - द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय।
द्रव्य को मुख्य रूप से विषय करने वाला नय 'द्रव्यार्थिक नय' कहलाता है। पर्याय को मुख्य रूप से विषय करने वाला नय 'पर्यायार्थिक नय' कहलाता है।
द्रव्यार्थिक नय के तीन भेद हैं - नैगम नय, संग्रह नय, व्यवहार नय। अनेक मार्गों से (तरीकों से) वस्तु का बोध कराने वाला नय 'नैगम नय' कहलाता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org