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श्रमण आवश्यक सूत्र - संलेखना के पाँच अतिचारों का पाठ
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३. कायगुप्ति के विषय जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊं - बिना उपयोग से चलना, ठहरना, बैठना-सोना, लांघना, बारम्बार लांघना सभी इन्द्रियों का व्यापार करना, इस प्रकार काया से संरंभ समारंभ आरंभ करना नहीं, ऐसी काया गुप्ति के विषय जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
संलेखना के पाँच अतिचारों का पाठ __ अपच्छिम मारणंतिय संलेहणा झूसणा आराहणाए पंच अइयारा जाणियल्वा न समायरियव्वा तंजहा ते आलोउं - इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, कामभोगासंसप्पओगे मा मज्झ हुज मरणंते वि सडा परूवणम्मि अण्णहा भावो जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स आलोउं (तस्स मिच्छामि दुक्कडं)।
‘कठिन शब्दार्थ - अपच्छिम - अंतिम, मारणांतिय - मरण समय संबंधी, संलेहणासंलेखना, झूसणा - सेवन करना, आराहणा - आराधना, इहलोगासंसप्पओगे - इस लोक में राजा चक्रवर्ती आदि के सुख की इच्छा की हो, परलोगासंसप्पओगे - परलोक में देवता इन्द्र आदि के सुख की इच्छा की हो, जीवियासंसप्पओगे - महिमा प्रशंसा फैलने पर बहुत काल तक जीवित रहने की इच्छा की हो, मरणासंसप्पओगे - कष्ट होने पर पर शीघ्र मरने की इच्छा की हो, कामभोगासंसप्पओगे - कामभोग की अभिलाषा की हो।
. भावार्थ - अंतिम मरण समय सम्बन्धी संलेखना [कषाय और शरीर को कृश करने के लिये किया जाने वाला तप विशेष] के विषय में कोई दोष लगा हो तो आलोचना करता हूँ - १. मैंने राजा चक्रवर्ती आदि के इस लोक सम्बन्धी सुख की आकांक्षा की हो, २. देव इन्द्र आदि के परलोक सम्बन्धी सुख की आकांक्षा की हो, ३. प्रशंसा होने पर बहुत काल तक जीवित रहने की इच्छा की हो, ४. दुःख से व्याकुल हो कर शीघ्र मरने की अभिलाषा की हो तथा ५. कामभोग की अभिलाषा की हो और मृत्यु समय पर्यन्त मेरी श्रद्धा प्ररूपणा में फर्क न हो इस प्रकार दिवस सम्बन्धी कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स आलोऊ (तस्स मिच्छामि दुक्कडं)। .
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