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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम
तस्स सव्वस्स का पाठ तस्स सव्वस्स देवसियस्स० अइयारस्स दुब्भासिय दुच्चिंतिय दुचिट्ठियस्स आलोयंतो पडिक्कमामि।
कठिन शब्दार्थ - तस्स - उस, सव्वस्स - सर्व, देवसियस्स - दिवस संबंधी, अइयारस्स - अतिचार की, दुब्भासिय - दुर्वचन, दुचिंतिय - दुष्ट विचार, दुचिट्ठियस्स - . दुष्ट व्यवहार की, आलोयंतो - आलोचना करता हुआ।
भावार्थ - मन से बुरे विचार उत्पन्न करके, वचन से दुर्वचन बोल कर तथा काया द्वारा दुष्ट व्यवहार (प्रवृत्ति) करके दिन भर में मैंने जो अतिचार किये हैं उनकी मैं आलोचना करता हुआ पापों से निवृत्त होता हूँ।
पाँच पदों की वंदना पहले पद श्री अर्हन्त भगवान् जघन्य बीस तीर्थंकर उत्कृष्ट एक सौ साठ तथा एक सौ सत्तर देवाधिदेवजी, उनमें वर्तमान काल में बीस विहरमानजी महाविदेह क्षेत्र में विचरते हैं। एक हजार आठ लक्षण के धारणहार चौंतीस अतिशय पैंतीस वाणी गुण कर के विराजमान, चौसठ इन्द्रों के वंदनीय पूजनीय, अठारह दोष रहित, बारह गुण सहित, अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र, अनन्त बलवीर्य, दिव्यध्वनि, भामण्डल, स्फटिक सिंहासन, अशोकवृक्ष, कुसुमवृष्टि, देवदुन्दुभि, छत्र धरावे, चंवर बिजावे, पुरुषकार पराक्रम के धरणहार, ढाईद्वीप पन्द्रह क्षेत्र में विचरते हैं। सर्व द्रव्यक्षेत्र-काल-भाव के जाननहार।
ऐसे श्री अर्हन्त भगवन्त दीन दयाल महाराज आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो हे अर्हन्त भगवन्त! मेरा अपराध बारम्बार क्षमा करिये। हाथ जोड़ मान मोड़, शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से १००८ बार वंदना नमस्कार करता हूँ। .
."देवसियस्स" के स्थान पर रात्रिक प्रतिक्रमण में "राइयस्स" पाक्षिक प्रतिमण में "देवसियस्स पक्खियस्स" चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में "चाउम्मासियस्स" सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में "संवच्छरियस्स" पाठ बोलना चाहिये ।
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