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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम
से संध्या के समय स्थण्डिल भूमि का प्रतिलेखन करना । भाव से परठने के लिए जाते समय तीन बार 'आवस्सही' कहना परठने के पहले शक्रेन्द्र महाराज की आज्ञा लेना परठने की भूमि का बराबर प्रतिलेखनप्रमार्जन करना, परठने के बाद तीन बार 'वोसिरामि' कहना पुनः आते समय तीन बार निसीहि कहना । उपाश्रय में आकर ईर्यावही का काउस्सग करना । ऐसी पांचवीं समिति के विषय जो कोई अतिचार - दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
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तीन गुप्ति
१. मनोगुप्ति के विषय जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊं - जो मन सावद्य, सक्रिय, सकर्कश, कटुक, निष्ठुर, परुष, आस्रवकारी, छेदकर, भेदकर, परितापनकर, उद्दवणकर, भूतोपघातिक इस प्रकार मन से संरंभ, समारंभ, आरंभ करना नहीं। ऐसी मनोगुप्ति के विषय जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
विवेचन १. सावद्य पाप युक्त, २. सक्रिय कायिकी आदि क्रिया युक्त, ३. सकर्कश - परुषतायुक्त, ४. कटुक कडवा, ५. निष्ठुर - कठोर, ६. पुरुष स्नेह रहित, ७. आस्त्रवकारी - अशुभ कर्म को ग्रहण करने वाला, ८. छेदकर - अंगदि काटने के भाव करने वाला, ९. भेदकर - अंगादि को बींधने के भाव, १०. परितापनकरप्राणियों को संतापित करने के भाव, ११. उद्दवणकर - मारणांतिक वेदनाकारी या धनहरणादि उपद्रवकारी, १२. भूतोपघातिक जीवों की घात की भावना वाला ।
२. वचन गुप्ति के विषय जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊं - जो वचन सावद्य, सक्रिय, सकर्कश, कटुक, निष्ठुर, पुरुष, आस्त्रवकारी, छेदकर, भेदकर, परितापनकर, उद्दवणकर, भूतोपघातिक इस प्रकार वचन से संरंभ, समारंभ आरंभ करना नहीं। ऐसी वचन गुप्ति के विषय जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
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