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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
३. दृष्टि राग - विकार दृष्टि से स्त्री आदि को देखना दृष्टि राग है। अपने विचारों का आग्रह अपने मत का आग्रह येन-केन प्रकारेण व्यक्ति को पूर्व दृष्टि छुड़ाकर अपनी दृष्टि का आग्रह करना इन सब में काषायिक तीव्रता होने से इनका भी दृष्टि राग में समावेश किया जाता है। किसी के सामने जिनाज्ञानुसार यर्थात् दृष्टि रखना बिना माया से यर्थात् तत्त्व समझाना, आग्रहीपन का अभाव होने से इन्हें दृष्टि राग में नहीं लिया गया है।
५. पंचमे भंते! महब्बए सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं। द्रव्य से - सचित्त, अचित्त, मिश्र परिग्रह रखना नहीं, क्षेत्र से - सम्पूर्ण लोक प्रमाण, काल सेयावजीवन तक, भाव से - तीन करण तीन योग से, गुण से - संवर गुण। ऐसे पांचवें महाव्रत की पाँच भावना - १. शब्द, २. रूप, ३. गंध, ४. रस, ५. स्पर्श, इनमें अच्छे पर राग बुरे पर द्वेष करना नहीं, ऐसे पाँचवें महाव्रत के विषय जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं। .
६. छठे भन्ते! वए राइभोयणाओ वेरमणं - अशन, पान, खादिम, स्वादिम, सिक्थ मात्र, लेपमात्र, बिन्दुमात्र बासी रखा हो, रखाया हो, रखते हुए की अनुमोदना की हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
पाँच समिति . १. ईर्या समिति के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊं - द्रव्य से - छह काय के जीवों को एवं कांटे आदि को देख कर चलना। क्षेत्र से - युग मात्र भूमि को देख कर चलना। काल से - दिन में जब तक चले तब तक देख कर चलना। रात्रि में चलना नहीं किन्तु शारीरिक आदि कार्यों के लिए जाना पड़े तो रजोहरण से पूंजकर चलना। भाव से - दश बोल वर्ज कर चलना। (दश बोल - १. वाचना २. पृच्छना ३. परियट्टणा, ४. अनुप्रेक्षा ५. धर्मकथा यह पाँच प्रकार का स्वाध्याय और ६-१०. पाँच इन्द्रियों के विषय अर्थात् रूपादि को देखते हुए चलना नहीं।)
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