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________________ श्रमण आवश्यक सूत्र - पाँच महाव्रत १७९ २. गुरु अदत्त - गुरु महाराज से पूछे बिना कोई भी काम करना, वस्त्र पात्रादि लाना, 'उन्हें बिना दिखाए काम में लेना आदि प्रवृत्तियाँ गुरु अदत्त कहलाती है। जिन रत्नाधिकों को आगे करके विचरते हैं। उनकी बिना आज्ञा से प्रवृत्ति करना भी गुरु अदत्त में समाविष्ट है। ३. राजा अदत्त - छह खण्ड के अधिपति राजा कहलाते हैं, उनकी बिना आज्ञा से विचरना राजा अदत्त कहलाता है। ४. गाथापति अदत्त - माण्डलिक राजा को गाथापति कहते हैं। उनकी बिना आज्ञा से उनके राज्य में विचरना गाथापति अदत्त कहलाता है। शय्यातर को भी गाथापति कहा जाता है। उनकी बिना आज्ञा से उनके मकान में रहना, पाट, पाटले, संस्तारक आदि ग्रहण करना भी गाथापति अदत्त में समाविष्ट होता है। ५. साधर्मिक अदत्त - साधर्मिक के वस्त्र, पात्र, उपधि उपकरण आदि बिना आज्ञा के ग्रहण करना, साधारण पिण्ड को बिना आज्ञा से सेवन करना इत्यादि साधर्मिक अदत्त कहलाता है। . .. ४. चउत्थे भंते! महव्वए सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं। द्रव्य से - काम राग, स्नेह राग, दृष्टिराग रखना नहीं, देव मनुष्य तिर्यंच सम्बन्धी मैथुन सेवन करना नहीं, क्षेत्र से सम्पूर्ण लोक प्रमाण, काल से - यावजीवन तक, भाव से-तीन करण तीन योग से, गुण से-संवर गुण। ऐसे चौथे महाव्रत की पाँच भावना - १: स्त्री, पशु पण्डक (नपुंसक) सहित स्थानों में रहना नहीं २. स्त्री सम्बन्धी कथा वार्ता करनी नहीं। ३. स्त्री के अंगोपांगों को निरखना नहीं ४. पूर्व के कामभोगों का स्मरण करना नहीं। ५. प्रतिदिन सरस आहार करना नहीं। ऐसे चौथे महाव्रत के विषय जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं। विवेचन - १. काम राग - शब्दादि इन्द्रिय विषयों का अनुराग आसक्ति राग द्वेष काम राग कहलाता है। २. स्नेह राग - पुत्र पौत्रादि के प्रति स्नेहपमत्वादि भाव, उनके सुख समृद्धि की चाह स्नेह राग समझा जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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