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________________ १७८ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम संवरगुण। ऐसे पहले महाव्रत की पाँच भावना - १. ईर्या भावना २. मन भावना ३. वचन भावना ४. एषणा भावना ५. आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा भावना। ऐसे पहले महाव्रत के विषय जो कोई अतिचार-दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं। __. दुच्चे भंते! महव्वए सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं। द्रव्य से - क्रोध से, लोभ से, भय से, हास्य से, झूठ बोलना नहीं, क्षेत्र से - सम्पूर्ण लोक प्रमाण, काल से - यावज्जीवन तक, भाव से - तीन करण तीन योंग से, गुण से-संवर गुण। ऐसे दूसरे महाव्रत की पाँच भावना - १. बिना विचारे भाषा बोलना नहीं। २. क्रोध आने पर क्षमा रखना ३. लोभ आने पर संतोष करना ४. भय आने पर धैर्य रखना ५. हास्य आने पर मौन रखना। ऐसे दूसरे महाव्रत के विषय जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं। ३. तच्चे भंते! महव्वए सव्वाओ अदिण्णादाणाओवेरमणं। द्रव्य से - देव अदत्त, गुरु अदत्त, राजा अदत्त, गाथापति अदत्त, साधर्मी अदत्त लेना नहीं, क्षेत्र से - सम्पूर्ण लोक प्रमाण, काल से - यावज्जीवन तक, भाव से - तीन करण तीन योग से, गुण से-संवर गुण। ऐसे तीसरे महाव्रत की पाँच भावना - १. अठारह प्रकार के निर्दोष स्थान याच कर लेना, बिना याचे नहीं लेना। २. तृण, काष्ठ, कंकर आदि प्रतिदिन याच कर लेना। ३. उबडखाबड स्थान को व्यवस्थित नहीं करना। ४. साधारण पिण्ड भोगना नहीं। ५. वृद्ध ग्लान, रोगी, नवदीक्षित, आचार्य, उपाध्याय आदि का विनय वैयावच्च करना, विनय भी तप है। तप भी धर्म है ऐसे तीसरे महाव्रत के विषय जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं। विवेचन - १. देव अदत्त - तीर्थंकर देव की आज्ञा से विरुद्ध कोई भी प्रवृत्ति करना देव अदत्त है अथवा दक्षिण लोक के अधिपति शक्रेन्द्र है। परिस्थापन आदि सभी क्रियाएं उनकी आज्ञा लेकर की जाती है आज्ञा लिए बिना करने से भी देव अदत्त लगता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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