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________________ . श्रमण आवश्यक सूत्र - पाँच महाव्रत की पच्चीस भावनाओं का विस्तार १७५ विकृत रस वाला, सड़ा हुआ, बिगड़ा हुआ, घृणित, अत्यन्त विकृत बना हुआ, जिससे अत्यन्त दुर्गन्ध आ रही है ऐसा तीखा, कडुआ, कषैला, खट्टा और अत्यन्त नीरस आहार पानी और इसी प्रकार के अन्य घृणित रसों पर साधु द्वेष नहीं करे, रुष्ट नहीं होवे और रसना पर संयम रख कर धर्म का पालन करे। ५. स्पर्शनेन्द्रिय संयम - साधु स्पर्शनेन्द्रिय से मनोज्ञ और सुखदायक स्पर्शों का स्पर्श कर उनमें आसक्त नहीं बने। वे मनोज्ञ स्पर्शवाले द्रव्य कौनसे हैं ? जिनमें से जल कण बरस रहे हैं, ऐसे मण्डप (फव्वारायुक्त मण्डप), हारमालाएं, श्वेतचन्दन, निर्मल शीतल जल, विविध प्रकार के फूलों की शय्या, खस-मोतियों की माला, कमल की नाल इनका स्पर्श करना, रात्रि में निर्मल चांदनी में बैठ कर, सो कर या विचरण कर सुखानुभव करना, ग्रीष्मकाल में मयूर पंख का और ताडपत्र का पंखा झेल कर शीतल वायु का सेवन करना और कोमल स्पर्शवाले वस्त्र, बिछौने और आसन का उपयोग करना, शीतकाल में उष्णता उत्पन्न करने वाले वस्त्र, शाल, दुशाले आदि ओढना तथा अग्नि के ताप या सूर्य के ताप का सेवन करना तथा ऋतुओं के अनुसार स्निग्ध, मृदु, शीतल, उष्ण, लघु आदि सुखदायक पदार्थों का और इसी प्रकार के अन्य सुखद स्पर्शों का अनुभव करके आसक्त नहीं होना चाहिए। अनुरक्त, लुब्ध, गृद्ध एवं मूर्च्छित भी नहीं होना चाहिए और उन स्पर्शों को प्राप्त करने की चिन्ता तथा प्राप्ति पर प्रसन्न, तुष्ट एवं हर्षित नहीं होना चाहिए। इतना ही नहीं, इन्हें प्राप्त करने का विचार अथवा पूर्व प्राप्त का स्मरण भी नहीं करना चाहिए। - मनोज्ञ स्पर्श की रुचि, आसक्ति एवं लुब्धता का निषेध करने के बाद अमनोज्ञ स्पर्श के प्रति द्वेष का निषेध किया जा रहा है। साधु स्पर्शनेन्द्रिय से अमनोरम स्पर्श करके उन पर क्रोध या द्वेष नहीं करे। वे अमनोज्ञ स्पर्श कौनसे हैं? विविध प्रकार से कोई वध करे, रस्सी आदि से बांधे, थप्पड़ आदि मार कर ताडना करे, अंकन - उष्ण लोह शलाका से दाग कर अंग पर चिह्न बनावे, शक्ति से अधिक भार लादे, अंगों को तोड़े-मरोड़े, नखों में सुई चुभावे, शरीर को छीले, उबलता हुआ लाख का रस, क्षारयुक्त तेल, रांगा, शीशा और तप्त लोह रस से अंग सिंचन करे। हड्डी बंधन (खोड़े में पांव फंसा कर बन्दी बनावे) रस्सी या बेडी से बांधे, हाथों में हथकड़ी डाले, कुंभी में पकाया जाय, अग्नि में जलावे, वृक्ष आदि पर बांध कर लटकावे, शूल भोंके या शूली पर चढ़ावे, हाथी के पैरों में डाल कर कुचले, हाथ, पांव, कान, ओष्ठ, नासिका और मस्तक का छेदन करे। जीभ उखाड ले, नेत्र, हृदय और दांतों को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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