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________________ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 विकृत शरीरी, मृतक शरीर जो सड़ गया हो जिसमें कीड़े कुलबुला रहे हैं और घृणित वस्तुओं के ढेर तथा ऐसे अन्य प्रकार के अमनोज्ञ पदार्थों को देख कर, साधु उनसे द्वेष नहीं करे यावत् घृणा नहीं लावे। इस प्रकार चक्षुइन्द्रिय सम्बन्धी भावना से अपनी अन्तरात्मा को भावित करता हुआ - पवित्र रखता हुआ धर्म का आचरण करता रहे। ३. घाणेन्द्रिय संयम - तीसरी भावना घ्राणेन्द्रिय संवर है। मनोहर उत्तम सुगन्धों में आसक्त नहीं होना चाहिए। वे सुगन्ध कौनसे हैं? जल और स्थल में उत्पन्न सरस पुष्प और फल तथा भोजन, पानी, कमल का पराग, तगर, तमाल, पत्र, छाल, दमनक, मरुआ, इलायची, गोशीर्ष नामक सरस चन्दन, कपूर, लोंग, अगर, कुंकुम (केसर), कक्कोल, वीरण '(खस), श्वेत चन्दन (मलय चन्दन) उत्तम गंधवाले पदार्थों के मिश्रण से बने हुए, धूप की सुगन्ध, ऋतु के अनुसार उत्पन्न पुष्प जिनकी गन्ध दूर तक फैलती हैं, इसी प्रकार के अन्य मनोज्ञ व श्रेष्ठ गन्ध वाले पदार्थों की गन्ध पर साधु को आसक्त नहीं होना चाहिए यावत् उन गन्धों का स्मरण एवं चिन्तन भी नहीं करना चाहिए। घ्राणेन्द्रिय से अप्रिय लगने वाली दुर्गन्ध के प्रति द्वेष नहीं करना चाहिए। वे दुर्गन्धित पदार्थ कौन से और कैसे हैं? मरे हुए सर्प का कलेवर, मरा हुआ घोड़ा, हाथी, बैल, भेडिया, कुत्ता, श्रृंगाल, मनुष्य, बिल्ली, सिंह, चीता इत्यादि के शव सड गये हो, उनमें कीड़े पड़ गये हों, जिनकी दुर्गन्ध अत्यन्त असह्य एवं दूर तक फैली हो और अन्य भी दुर्गन्धमय पदार्थों की गन्ध प्राप्त होने पर, साधु उस पर द्वेष नहीं करे यावत् अपनी पांचों इन्द्रियों को वश में रखता हुआ धर्म का आचरण करे। ४. रसनेन्द्रिय संयम - साधु रसनेन्द्रिय द्वारा मन भावते एवं उत्तम रसों का आस्वादन करके आसक्त नहीं बने। वे रस कौनसे हैं? घृत में तलकर बनाये गये घेवर, खाजा आदि और विविध प्रकार के भोजन पान, गुड और शक्कर से बनाये हुए तिलपट्टी, लड्डु, मालपुआ आदि भोज्य पदार्थों में, अनेक प्रकार के लवणयुक्त (नमकीन, मसालेदार) वस्तुओं में और भी अठारह प्रकार के शाक और विविध प्रकार के भोजन में तथा वे द्रव्य जिनका वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श उत्तम है और उत्तम वस्तुओं के योग से संस्कारित किये गये हैं इस प्रकार के सभी उत्तम एवं मनोज्ञ रसों में साधु आसक्त नहीं बने यावत् उनका स्मरण चिन्तन भी नहीं करे। ___रसनेन्द्रिय के द्वारा अमनोज्ञ-अरुचिकर बुरे रसों का आस्वाद लेकर उनमें द्वेष नहीं करें। वे अनिच्छनीय रस कैसे हैं ? - अरस, विरस, शीत (ठण्डा), रूक्ष और निस्सार आहार-पानी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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