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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम
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५५. पूईक (पूतिकर्म ) - शुद्ध आहारादि में सहस्र घर के अंतर से भी आधाकर्मी आदि अशुद्ध आहार का अंश मिल गया हो उसे लेना 'पूतिकर्म' है ।
५६. मी सजाए ( मिश्रजात ) - गृहस्थ के लिए और साधु के लिए सम्मिलित बनाया हुआ आहारादि लेना 'मिश्रजात' है।
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५७. ठवणा (स्थापना) साधु के लिए रखा हुआ (बालक, भिखारी आदि के मांगने पर भी जो उन्हें न दिया जाय वैसा) आहारादि लेना 'स्थापना' है ।
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५८. पाहुडियाए (प्राभृतिका ) - साधुओं को भी जीमनवार का आहारादि दान में दिया जा सके इसलिए गृहस्थ ने जिसे जीमनवार को समय से पहले या पीछे किया हो उस जीमनवार का आहारादि लेना 'प्राभृतिका' है।
५९. पाओअर (प्रादुष्करण) अयतना से कपाट आदि खोल कर या दीपक आदि जला कर प्रकाश आदि करके दिया जाता हुआ आहारादि लेना 'प्रादुष्करण' है।
६०. कीय (क्रीत) - साधु के लिए खरीदा हुआ आहारादि लेना 'क्रीत' है ।
६१. पामिच्चे (प्रामीत्य ) - साधु के लिए उधार लिया हुआ आहारादि लेना 'प्रामीत्य'
है।
६२. परियट्टिए (परिवर्तित ) साधु के लिये कोई वस्तु दूसरे को देकर बदले में उससे लिया हुआ आहारादि लेना 'परिवर्तित' है ।
६३. अभिहडे (अभिहृत) - सामने लाया हुआ आहारादि टिफिन आदि लेना 'अभिहृत' है। आहार कहाँ से लाया जा रहा है ? यदि यह दिखाई न दे तो तीन घर कमरे की दूरी से भी आहार लेना वर्ज्य है ।
६४. उब्भिन्ने (उद्भिन्न) - लेपन ढक्कन अयतना से खोल कर दिया हुआ (या पीछे जिसका लेपन ढक्कन आदि अयतना से लगाया जाय वैसा) आहारादि लेना 'उद्भिन्न' है। पृथ्वीका अग्नि आदि की विराधना के कारण यह सदोष है ।
६५. मालोहडे (मालापहृत) - ऊँचे माले आदि विषम स्थान से कठिनता से निकाला हुआ आहारादि लेना 'मालापहृत' है।
६६. अच्छिज्जे (आच्छेद्य) 'आच्छेद्य' है।
साधु के लिए निर्बल से छीना हुआ आहारादि लेना
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