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श्रमण आवश्यक सूत्र - १२५ अतिचारों का समुच्चय पाठ
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४६. राइ-राइ भोयणं - रात्रि में आये हुए उगाले को निगल जाना। अति मात्रा में दिन में भोजन होने से रात्रि में भी उसकी गंध चालू रहना। उदय अस्त की शंका होते हुए भी आहारादि का सेवन करना 'रात्रि रात्रि भोजन' है।
४७-५०. ईर्या समिति के चार अतिचार ४७. आलम्बन - ज्ञान, दर्शन और चारित्र की रक्षा पुष्टि एवं वृद्धि के लिए चलना।
४८. काल - रात्रि में वर्जकर दिन में चलना। उच्चार प्रस्रवण आदि के परिस्थापन के लिए जा सकते हैं। शय्यातर ने मकान छोड़ देने का कह दिया हो या शील भंग का भय आदि हो तो इन अत्यन्त आवश्यक प्रायोजनों से रात्रि में भी मर्यादित गमन किया जा सकता है।
४९. मार्ग- (संयम) छहकाय की विराधना और आत्मा (शरीर) विराधना से बचने के लिए उत्पथ (कांटे आदि से युक्त मार्ग) को छोड़कर सुपथ में चलना।
५०. यतना - चार प्रकार की यतना से चलना। १. द्रव्य यतना - आँखों से छह काय के जीव तथा काँटे आदि अजीव पदार्थों को देख कर चलना। २. क्षेत्र यतना - शरीर प्रमाण अर्थात् चार हाथ प्रमाण आगे की भूमि को देख कर चलना। ३. काल यतना - जब तक गमनागमन करना उपयोगपूर्वक चलना। ४. भाव यतना - दस बोल वर्जकर उपयोग सहित चलना। (दस बोल - शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श, वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा, धर्मकथा।) इस प्रकार सम्यक् प्रकार से नहीं चलने पर अतिचार लगते हैं।
....... ५१-५२. भाषा समिति के दो अतिचार ५१. असत्य भाषा का प्रयोग नहीं करना। ५२. मिश्र भाषा का प्रयोग नहीं करना। इनका प्रयोग करने पर अतिचार लगते हैं। - ५३-९९. एषणा समिति के सैंतालीस अतिचार .
उद्गम के सोलह दोष ५३. अहाकम (आधाकर्म) - साधु के लिए बनाया हुआ आहारादि लेना 'आधाकर्म' है।
५४. उद्देसिय (औद्देशिक) - अन्य साधु के लिए बनाया हुआ आहारादि लेना 'औद्देशिक' है।
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