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आवश्यक सत्र - परिशिष्ट प्रथम
पण्डक (नपुंसक) आदि से युक्त शयनासन का वर्जन करना 'असंसक्त वास वसति समिति भावना' है।
३६. इत्थी कह विरइ समिइ भावणा - ब्रह्मचर्य में बाधक इस प्रकार की स्त्री संबंधी कथावार्ता नहीं करना 'स्त्री कथा विरति समिति भावना' है।
३७. इत्थी रूव विरइ. समिइ भावणा - स्त्रियों के अंगोपांग को नहीं देखना 'स्त्री रूप विरति समिति भावना' है।
३८. पुव्वरय पुव्वकीलिय विरइ समिइ भावणा - पूर्वरति एवं पूर्व क्रीड़ा का स्मरण नहीं करना 'पूर्वरत पूर्व कीडित विरति समिति भावना' है। - ३९. पवीयाहार विरइ समिइ भावणा - मन को चंचल करने वाले गरिष्ठ एवं तामसिक (उष्णतावर्द्धक) भोजन का विवेक करना 'प्रणीताहार विरति समिति भावना' है।
४०-४४. पाँचवें महाव्रत की पाँच भावना ४०. सोइंदिय भावणा - श्रोत्रेन्द्रिय के रुचि कर शब्दों पर राग और अरुचि कर शब्दों पर द्वेष नहीं करना 'श्रोत्रेन्द्रिय भावना' है।
४१. चक्विंदिय भावणा - चक्षुरिन्द्रिय के रुचिकर रूपों पर राग और अरुचिकर रूपों पर द्वेष नहीं करना 'चक्षुरिन्द्रिय भावना' है। .
४२. पाणिंदिय भावणा - घ्राणेन्द्रिय के रुचिकर गंधों पर. राग और अरुचिकर गंधों पर द्वेष नहीं करना 'घ्राणेन्द्रिय भावना' है।
- ४३. जिमिंदिय भावणा - रसनेन्द्रिय के रुचिकर रसों पर राग और अरुचिकर रसों पर द्वेष नहीं करना 'रसनेन्द्रिय भावना' है।
४४. फासिदिय भावणा - स्पर्शनेन्द्रिय के रुचिकर स्पर्शों पर राग और अरुचिकर स्पर्शों पर द्वेष नहीं करना 'स्पर्शनेन्द्रिय भावना' है।
४५-४६. छठे व्रत की दो भावना ४५. दिवा राइ भोयणं - साधु द्वारा अपने पास आहारादि रातबासी रख कर दूसरे दिन उस आहारादि का सेवन करना। अंधकार वाले स्थान में भोजन करना। अंधकार वाले भाजन (पात्र संकडे, मुँह वाला हो) (उसमें रखा हुआ आहारादि दिखता न हो) से दिन में भी आहार का सेवन करना 'दिवस रात्रि भोजन' है।
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