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श्रमण आवश्यक सूत्र - १२५ अतिचारों का समुच्चय पाठ
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___२४. आयाण भण्ड निक्खेवणा समिइ भावणा - वस्तु को लेने और रखने में संयम विधि का ध्यान रखना 'आदान भाण्ड निक्षेपणा समिति भावना' है।
२५-२९. दूसरे महाव्रत की पाँच भावना २५. अणुवीइ समिइ भावणा - संयम मर्यादा का ध्यान रखते हुए उपयोग पूर्वक बोलना 'अणुविचि समिति भावना' है।
२६. कोहे विवेग खंति भावणा - क्रोध के प्रसंगों के उपस्थित होने पर भी क्रोध पर नियंत्रण रखना, क्षमा धारण करना 'क्रोध विवेक क्षमा भावना' है।
२७. लोभ विवेग मुत्ति भावणा - लोभ के प्रसंगों के उपस्थित होने पर भी लोभ पर नियंत्रण रखना, संतोष धारण करना 'लोम विवेक संतोष भावना' है।
- २८. भय विवेग धेज भावणा - भय के प्रसंगों के उपस्थित होने पर भी भय पर नियंत्रण करना, धैर्य धारण करना 'भय विवेक धैर्य भावना' है।
२९. हास विवेग मोण भावणा - हास्य के प्रसंगों के उपस्थित होने पर भी हास्य पर नियंत्रण रखना, मौन रखना 'हास्य विवेक मौन भावना' है।
३०-३४. तीसरे महाव्रत की पाँच भावना ____३०. विवित्तवास वसहि समिइ भावणा - साधु के योग्य निर्दोष स्थान की आगम विधि के अनुसार याचना करना 'विवित्तवास वसति समिति भावना' है। ___३१. उग्गइ समिइ भावणा - संयम प्रायोग्य तृणादि वस्तुओं की प्रतिदिन याचना करना 'अवग्रह समिति भावना' है। . ३२. सेज्जा समिइ भावणा - प्राप्त निर्दोष शय्या में किसी भी प्रकार के संस्कार नहीं करना 'शय्या समिति भावना' है।
३३. साहारण पिंडपायलाभ समिइ भावणा - साधारण पिण्डपात का बराबर संविभाग करना 'साधारण पिण्डपात लाभ समिति भावना' है।
३४. विणय समिइ भावणा - विनयाई गुरुजनों के प्रति भक्ति अर्पणता सहित सभी प्रकार का विनय करना 'विनय समिति भावना' है।
३५-३९. चौथे महाव्रत की पाँच भावणा ३५. असंसत्त वासवसहि समिइ भावणा - ब्रह्मचर्य में बाधक ऐसे स्त्री, पशु,
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