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________________ १५२ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम (१-३ मनोगुप्ति के तीन अतिचार ४-६ वचन गुप्ति के तीन अतिचार ७-९ काया गुप्ति के तीन अतिचार) १२१-१२५. तपातिचार - संलेखना के पाँच अतिचार १. इहलोगासंसप्पओगे, २. परलोगासंसप्पओगे, ३. जीवियासंसप्पओगे, ४. मरणासंसप्पओगे, ५. कामभोगासंसप्पओगे, तस्स (आलोउं) मिच्छामि दुक्कडं। १२५ अतिचारों का समुच्चय पाठ इस प्रकार ज्ञान के १४, दर्शन के ५, पाँच महाव्रत की पच्चीस भावना के २५, रात्रि भोजन के २, पहली समिति के ४, दूसरी समिति के २, तीसरी समिति के ४७, चौथी समिति के २, पांचवी समिति के १०, तीन गुप्ति के ९० संलेखणा के ५ इन १२५ अतिचारों में जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स (आलोऊ) मिच्छामि दुक्कडं। _ विवेचन - उपरोक्त १२५ अतिचारों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है - १-१४. ज्ञान के १४ अतिचार (१. वाइद्धं.......सज्झाइय) का ज्ञानातिचार सूत्र (पृ० २९-३८) पर एवं १५-१९. दर्शन के ५ अतिचार का दर्शन सम्यक्त्व के पाठ (पृ० १४७-१४८) पर स्पष्टीकरण दिया जा चुका है। २०-२४. पहले महाव्रत की पाँच भावना २०. इरिया समिइ भावणा - गमनागमन के अंदर संयमविधि की सावधानी रखना 'ईर्या समिति भावना' है। २१. मण समिइ भावणा - संयम के अयोग्य मन को नहीं प्रर्वताना 'मन समिति भावना' है। ___२२. वय समिइ भावणा - संयम के अयोग्य वचन को नहीं प्रर्वताना 'वचन समिति भावना' है। २३. आहार समिइ भावणा - ग्रहणैषणा, गवेषणैषणा, परिभोगैषणा का ध्यान रखना 'आहार समिति भावना' है। पूरी एषणा समिति का इसमें अतभाव समझना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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