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________________ १५० आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम ४०-४४ पाँचवें महाव्रत की पाँच भावना . २१. सोइंदिय भावणा २२. चक्खिंदिय भावणा २३. घाणिंदिय भावणा २४. जिब्भिंदिय भावणा २५. फासिंदिय भावणा। . ४५-४६ छठे व्रत की दो भावना १. दिवा राइभोयणं २. राइ राइभोयणं। . ४७-५० ई समिति के चार अतिचार आलंबणेण कालेण, मग्गेण जयणाइ य। चउकारण-परिसुद्धं, संजए इरियं रिए॥१॥ (१. आलंबन २. काल ३. मार्ग ४. यतना) ५१-५२ भाषा समिति के दो अतिचार कोहे माणे य मायाए, लोभे य उवउत्तया। हासे भए मोहरिए, विकहासु तहेव य॥२॥ (चउण्हं खलु भासाणं, परिसंखाय पण्णयं। दुण्हं तु विणयं सिक्खे, दो ण भासिज सव्वसो।) (१. असत्य और २. मिश्र भाषा का प्रयोग नहीं करना।) ५३-९९ एषणा समिति के ४७ अतिचार आहाकम्मुद्देसिय, पूइक्कमे य मीसजाए य। ठवणा पाहुडियाए, पाओयर कीय पामिच्चे॥१॥ परियट्टिय अभिहडे, उब्भिण्णे मालोहडे इय। अच्छिज्जे अणिसिटे, अज्झोयरए य सोलसमे॥२॥ धाई दूई निमित्ते, आजीव वणीमग्गे तिगिच्छा य। कोहे माणे माया लोभे, य हवंति दस एए॥३॥ पुव्विं पच्छासंथव, विज्जा मंते य चुण्ण जोगे य। उप्यायणाइ दोसा, सोलसमे मूलकम्मे य॥४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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