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श्रमण आवश्यक सूत्र - कायोत्सर्ग का पाठ (१२५ अतिचार)
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वाउकाय में - वामन, चामर, पंखे, पत्र, पत्र के टुकड़े शाखा, शाखा के टुकड़े, मोर पंख, मोर पिंछी, वस्त्र, वस्त्र के पल्ले, हाथ और मुख से अपना शरीर अथवा आहार आदि को नवकोटि से फुत्कार एवं व्यजन नहीं करना चाहिए। इत्यादि वाउकाय की किसी भी प्रकार की विराधना की हो तो तस्स (आलोऊ) मिच्छामि दुक्कडं।
- वनस्पतिकाय में - बीज, बीज प्रतिष्ठित, अंकुर, अंकुर प्रतिष्ठित, जात (पत्रित), जात प्रतिष्ठित, हरित, हरित प्रतिष्ठित, छिन्न, छिन्न प्रतिष्ठित, सचित्त, सचित्त कोलप्रतिनिश्रित पर नवकोटि से जाना, ठहरना, बैठना, सोना आदि क्रिया नहीं करनी चाहिए। इत्यादि वनस्पतिकाय की किसी भी प्रकार की विराधना की हो तो तस्स (आलोऊं) मिच्छामि दुक्कडं।
नसकाय में - कीट, पतंग, कुंथु, पीपिलीका रूप बेइन्द्रिय आदि जीव, हाथ, पैर, बाहु, उरु, उदर, सिर, वस्त्र, पात्र, रजोहरण, गोच्छक, स्थण्डिल, दण्डक, पीठ, फलक, शय्यासंस्तारक, इसी प्रकार के किसी अन्य उपकरण पर आ जाय तो यतना पूर्वक हटाना चाहिए। हटाने में नवकोटि से किसी भी प्रकार की अयतना नहीं करनी चाहिए। इत्यादि त्रसकाय की किसी भी प्रकार की विराधना की हो तो तस्स (आलोऊं) मिच्छामि दुक्कडं।
२०-२४ पहले महाव्रत की पाँच भावना १. इरिया समिइ भावणा २. मण समिइ भावणा ३. वय समिइ भावणा ४. आहार समिइ भावणा ५. आयाण-भंडमत्त निक्खेवणा समिइ भावणा।
२५-२९ दूसरे महाव्रत की पाँच भावना ६.. अणुवीइ समिइ भावणा ७. कोह विवेग खंति भावणा ८. लोभ विवेग मुत्ति भावणा ९. भय विवेग धेजं भावणा १०. हास विवेग मोण भावणा।
. ३०-३४ तृतीय महाव्रत की पाँच भावना ११. विवित्तवासवसहि समिइ भावणा १२. उगह समिइ भावणा १३. सेज्जा समिइ भावणा १४. साहारणपिंडपायलाभ समिइ भावणा १५. विणय समिइ भावणा।
... ३५-३९ चौथे महाव्रत की पाँच भावना .. १६. असंसत्त वासवसहि समिइ भावणा १७. इत्थी कह विरइ समिइ भावणा १८. इत्थी रूव विरइ समिइ भावणा १९. पुव्वरय पुव्वकीलिय विरइ समिइ भावणा २०. पणीयाहार विरइ
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