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________________ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम .................................................................................***** कंखा - अन्य मतियों के आडम्बर, पूजा, चमत्कार आदि देखकर परमत ग्रहण करने की आकांक्षा होती है? ऐसी आकांक्षा का निवारण करने के लिए यह स्पष्ट समझना चाहिये कि आडम्बरादि प्रवृत्तियों में छह काया के जीवों का आरम्भ होता है। आरम्भ समारम्भ धर्म नहीं है, अतः इनकी चाह करना दोष है । परपासंड पसंसा (पर- पाखण्डी प्रशंसा) १४८ की प्रशंसा करना । परपासंड संथवो (पर- पाखण्डी परिचय) अन्य मत के साधुओं या विशिष्ट व्यक्तियों के साथ आलाप, संलाप, संवास, परिचर्यादि करना और उनके ग्रन्थों का अध्ययन करना ! कायोत्सर्ग का पाठ (१२५ अतिचार) - १ - १४. ज्ञानातिचार - वाइद्धं वच्चामेलियं, हीणक्खरं, अच्चक्खरं, पपहीणं, विणयहीणं, जोगहीणं, घोसहीणं, सुड्डुदिण्णं, दुट्टुपडिच्छियं, अकाले कओ सज्झाओ, काले न कओ सज्झाओ, असज्झाइए सज्झाइयं, सज्झाइए न सज्झाइयं। - अन्य मत के सिद्धान्त, शास्त्र औरं साधुओं - १५ - १९. दर्शनातिचार संका, कंखा, वितिगिच्छा, परपासंडपसंसा, परपासंडसंथवो। Jain Education International - २० - १२०. चारित्राचार छजीवणिकाययतना - पृथ्वीकाय में - पृथ्वी, भित्ति, शिला, लेलु, सचित्त रज से खरडे हुए शरीर वस्त्रादि का नवकोटि से आलेखन, विलेखन, घट्टन और भेदन नहीं करना चाहिए । इत्यादि पृथ्वीकाय की विराधना की हो तो तस्स (आलोऊं ) मिच्छामि दुक्कडं । अप्काय में - उदक, ओस, हिम, महिका, करक, हरितनुक, शुद्धोदक पानी से गीला एवं स्निग्ध शरीर एवं वस्त्र का नवकोटि से आमर्श, संस्पर्श, आपीडन, प्रपीडन, आस्फोटन, प्रस्फोटन आतापन, प्रतापन नहीं करना चाहिए । इत्यादि अप्काय की किसी भी प्रकार की विराधना की हो तो तस्स (आलोऊं ) मिच्छामि दुक्कडं । तेउकाय में - अग्नि, अंगारे, मुर्मुर, अर्चि, ज्वाला, अलात, शुद्ध अग्नि, उल्का का नवकोटि से उत्सेचन, घट्टन, भेदन, उज्ज्वालन, प्रज्ज्वालन, निर्वापन नहीं करना चाहिए । इत्यादि तेउकाय की किसी भी प्रकार की विराधना की हो तो तस्स (आलोऊं ) मिच्छामि दुक्कडं । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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