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श्रमण आवश्यक सूत्र - प्रणिपात सूत्र (णमोत्थुणं का पाठ) १४१ *.00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवर-चाउरंत-चक्कवट्टीणं दीवताण सरणगइपइट्ठाणं अप्पडिहय-वर-णाण-दंसणधराणं विअट्टछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिव-मयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं णमो जिणाणं जियभयाणं॥
कठिन शब्दार्थ - णमोत्थुणं - नमस्कार हो, अरहंताणं - अहंत, भगवंताणं - भगवान् को, आइगराणं - धर्मतीर्थ की आदि करने वाले, तित्थयराणं - धर्म तीर्थ की स्थापना करने वाले, सयंसंबुद्धाणं - स्वयं ही बोध को प्राप्त करने वाले, पुरिसुत्तमाणं - पुरुषों में उत्तम, पुरिससीहाणं - पुरुषों में सिंह के समान, पुरिसवर-पुंडरीयाणं - पुरुषों में श्रेष्ठ कमल के समान, पुरिसवर-गंधहत्थीणं - पुरुषों में श्रेष्ठ गंधहस्ती के समान, लोगुत्तमाणंलोक में उत्तम, लोगणाहाणं - लोक के नाथ, लोगहियाणं - लोक के हितकारी, लोगपईवाणं - लोक में दीपक के समान, लोगपज्जोयगराणं - लोक में उद्योत करने वाले, अभयदयाणं - अभय देने वाले, चक्खुदयाणं - ज्ञान रूपी चक्षु (आंख) देने वाले, मग्गदयाणं - धर्ममार्ग के दाता, सरणदयाणं - शरण के दाता, जीवदयाणं - संयम जीवन के दाता, बोहिदयाणं - सम्यक्त्व देने वाले, धम्मदयाणं - धर्म के दाता, धम्मदेसयाणं - धर्म के उपदेशक, धम्मनायगाणं - धर्म के नायक, धम्मसारहीणं - धर्म के सारथी, धम्मवरचाउरंतचक्कवट्ठीणं - चार गति का अन्त करने वाले श्रेष्ठ धर्म रूपी चक्र को धारण करने वाले (धर्म चक्रवर्ती), दीव - संसार समुद्र में द्वीप के समान, ताणं - रक्षक रूप, सरण - शरणभूत, गइ - गति रूप, पइट्ठाणं - प्रतिष्ठा (आधार) रूप, अप्पडिहयवरणाण-दसणधराणं - अप्रतिहत (बाधा रहित) तथा श्रेष्ठ (परिपूर्ण) ज्ञान दर्शन के धारक, विअट्टछउमाणं - छद्म अर्थात् घातीकर्म से निवृत्त, जिणाणं - स्वयं राग द्वेष को जीतने वाले, जावयाणं - दूसरों को जिताने वाले, तिण्णाणं - स्वयं संसार समुद्र से तिरे हुए, तारयाणं - दूसरों को तिराने वाले, बुद्धाणं - स्वयं बोध पाये हुए, बोहयाणं - दूसरों को बोध प्राप्त कराने वाले, मुत्ताणं - स्वयं कर्म बन्धन से छूटे हुए, मोयगाणं - दूसरों को छुड़ाने वाले, सव्वण्णूणं - सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाले), सव्वदरिसीणं - सर्वदर्शी (सब कुछ देखने वाले), सिवं - निरुपद्रव, कल्याण स्वरूप, अयलं - अचल-स्थिर, अरुअं -
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