SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रत्याख्यान - प्रत्याख्यान सूत्र ___ १३९ १. स्पर्शित - गुरुदेव से या स्वयं विधिपूर्वक प्रत्याख्यान लेना। (प्रवचन सारोद्वारवृत्ति) आचार्य हरिभद्रसूरि ने आवश्यक चूर्णि में कहा है - फासियं नाम जं अंतरा न खंडति अर्थात् स्वीकृत प्रत्याख्यान को बीच में खंडित न करते हुए शुद्ध भावना से पालन करना। २. पालित - प्रत्याख्यान को बार-बार उपयोग में ला कर सावधानी के साथ उनकी सतत रक्षा करना। ३. शोधित - कोई दूषण लग जाय तो सहसा उसकी शुद्धि करना। सोहियं का संस्कृत रूप शोभित भी होता है अर्थात् गुरुजनों को साधर्मिकों को अथवा अतिथिजनों को भोजन देकर फिर स्वयं करना। . ४. तीरित - लिए हुए प्रत्याख्यान को तीर तक पहुँचाना अथवा लिए हुए प्रत्याख्यान का समय पूरा हो जाने पर भी कुछ समय ठहर कर भोजन करना। ५. कीर्तित - भोजन प्रारंभ करने से पहले लिए हुए प्रत्याख्यान को विचार कर उत्कीर्तन पूर्वक कहना कि मैंने अमुक प्रत्याख्यान अमुक रूप से ग्रहण किया था, वह भलीभांति पूर्ण हो गया है। मैंने प्रत्याख्यान करके बहुत अच्छा किया, इस प्रकार कीर्तन करना। ६. आराधित - सबं दोषों से सर्वथा दूर रहते हुए ऊपर कही हुई विधि के अनुसार प्रत्याख्यान की आराधना करना। प्रस्तुत सूत्र के द्वारा स्वीकृत व्रत की शुद्धि की जाती है भ्रान्तिजनित दोषों की आलोचना की जाती है और अंत में मिच्छामि दुक्कर्ड देकर प्रत्याख्यान में हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण किया जाता है। ॥ छठा अध्ययन समाप्त॥ ||आवश्यक सूत्र समाप्त। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy