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आवश्यक सूत्र - षष्ठ अध्ययन
विवेक ६. प्रत्यीयम्रक्षित ७. पारिष्ठापनिकाकार ८. महत्तराकार और ९. सर्वसमाधिप्रत्ययाकार। निवि के नौ आगारों में से आठ आगारों का वर्णन तो पूर्व में कर दिया गया है, नववें आगार 'पडुच्चमक्खिएण' का अर्थ इस प्रकार हैं -
पडुच्चमक्खिएणं (प्रतीत्य-मक्षित) - म्रक्षित - चुपड़े हुए को कहते हैं और प्रतीत्य का अर्थ जैसा (दिखाई दें) अतः प्रतीत्य-म्रक्षित का अर्थ हुआ जो अच्छी तरह चुपड़ा हुआ न हो किन्तु चुपड़ा हुआ जैसा हो अर्थात् म्रक्षिता भास हो। प्रवचन सारोद्धार वृत्ति में कहा है. कि - ‘म्रक्षितमिव यद् वर्तते तत्प्रतीत्यं म्रक्षितं म्रक्षिताभास नित्यर्थः।
प्रत्यारव्यान पारणा सूत्र उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पच्चक्खाणं कयं तं पच्चक्खाणं सम्म काएणं, न फासियं, न पालियं, न तीरियं, न किट्टियं, न सोहियं, न आराहियं, न आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
कठिन शब्दार्थ - सम्म - सम्यक्रूप से, काएण - काया से, फासियं - स्पर्शित, पालियं - पालित, तीरियं - तीरित, सोहियं - शोधित, किट्टियं - ,कीर्तित, आराहियं - आराधित, अणुपालियं - अनुपालित।
भावार्थ - सूर्योदय होने पर जो नवकारसी......आदि प्रत्याख्यान किया था वह प्रत्याख्यान काया के द्वारा सम्यक् रूप से स्पर्शित पालित, तीरित, कीर्तित, शोधित और आराधित नहीं किया हो, आज्ञा की अनुपालना न की हो तो उसका दुष्कृत मेरे लिए मिथ्या हो।
विवेचन - यह प्रत्याख्यानपूर्ति का सूत्र है। कोई भी न्याख्यान किया हो उसकी समाप्ति प्रस्तुत सूत्र के द्वारा करनी चाहिये। ऊपर मूल पाठ में 'नमुक्कार सहियं' नवकारसी का सूचक सामान्य शब्द है। इसके स्थान पर जो प्रत्याख्यान ग्रहण कर रखा हो उसका नाम लेना चाहिये।
प्रत्याख्यान पारने के छह अंग बतलाए गये हैं. उनका स्पष्टीकरण (विवेचन) इस प्रकार है -
* 'नमुक्कारसहियं' के स्थान पर जो प्रत्याख्यान ग्रहण कर रखा हो, उसका नाम लेना चाहिए।
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