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प्रत्याख्यान - प्रत्याख्यान सूत्र
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९. अभिग्रह अभिग्गहं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं-असणं, पाणं, खाइमं, साइमं। अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।
भावार्थ - अभिग्रह का व्रत ग्रहण करता हूँ, फलतः अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों ही आहार का (संकल्पित समय तक) त्याग करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्ययाकार-उक्त चार आगारों के सिवा अभिग्रहपूर्ति तक चार आहार का त्याग करता हूँ।
विवेचन - उपवास के बाद या बिना उपवास के अपने मन में निश्चय कर लेना कि अमुक बातों के मिलने पर ही पारणा या आहारादि ग्रहण करूंगा, इस प्रकार की प्रतिज्ञा को 'अभिग्रह' कहते हैं। अभिग्रह में जो बातें धारण करनी हो उन्हें मन में या वचन द्वारा निश्चय कर लेने के बाद पच्चक्खाण किया जाता है।
१०. निर्विकृतिक (निवि) विगइओ पच्चक्खामि अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थसंसटेणं, उक्खित्तविवेगेणं, पडुच्चमक्खिएणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।
कठिन शब्दार्थ - विगइओ - विगयों का, पच्चक्खामि - प्रत्याख्यान करता हूँ, पडुच्चमक्खिएणं - प्रतीत्यम्रक्षित।
भावार्थ - विगयों का प्रत्याख्यान करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थसंसृष्ट, उत्क्षिप्त विवेक, प्रतीत्यम्रक्षित, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार उक्त नौ आगारों के सिवाय विगय का त्याग करता हूँ।
विवेचन - विगयों के त्याग को निर्विकृतिक - निवि पच्चक्खाण कहते हैं। निर्विकृतिक के ९ आगार हैं - १. अनाभोग २. सहसाकार ३. लेपालेप ४. गृहस्थसंसष्ट ५. उत्क्षिप्त
® ये सब आगार मुख्य रूप से साधु के लिए कहे गए हैं। श्रावक को अपनी मर्यादानुसार स्वयं समझ लेने चाहिए।
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