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________________ १३६ आवश्यक सूत्र - षष्ठ अध्ययन २. अलेपकूत - जिस पानी से पात्र में लेप न लगे। जैसे - छाछ आदि का निथरा . हुआ कांजी आदि का पानी। ३. अच्छ - अच्छ का अर्थ स्वच्छ उष्णोदक है। ४. बहल - तिल, चावल और जौ आदि का चिकना मांड। . ५. ससिक्य - जिसमें सिक्थ अर्थात् आटे आदि के कण भी हों। ६. असिक्य - आटे आदि से लिप्त हाथ तथा पात्र आदि का वह धोवन जो छना हुआ हो फलतः जिसमें आटे आदि के कण भी न हों, असिक्थ कहलाता है।.. ८.दिवसचरिम दिवसचरिमं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं। अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। भावार्थ - दिवस चरम का व्रत ग्रहण करता हूँ फलतः अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों आहार का त्याग करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार; महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्ययाकार - उक्त चार आगारों के सिवाय आहार का त्याग करता हूँ। विवेचन - चरम का अर्थ है - अंतिम भाग। वह दो प्रकार का है - १. दिवस का अंतिम भाग और २. भव अर्थात् आयु का अंतिम भाग। सूर्य के अस्त होने से पहले ही दूसरे दिन सूर्योदय तक के लिए चारों अथवा तीनों आहारों का त्याग करना, दिवसचरस प्रत्याख्यान है अर्थात् उक्त प्रत्याख्यान में शेष दिवस और संपूर्ण रात्रि भर के लिए चार अथवा तीन आहार का त्याग किया जाता है। साधक के लिए आवश्यक है कि वह कम से कम दो घड़ी , दिन रहते ही आहार पानी से निवृत्त हो जाय और सायंकालीन प्रतिक्रमण के लिए तैयारी करे। भवचरम प्रत्याख्यान का अर्थ है जब साधक को निश्चय हो जाय कि आयु थोड़ी ही. शेष है तो यावज्जीवन के लिए चारों या तीनों आहारों का त्याग कर दे। दिवसचरम और भवचरम के चार ही आगार है - १. अनाभोग २. सहसाकार ३. महत्तराकार और ४. सर्वसमाधि प्रत्ययाकार। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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