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आवश्यक सूत्र - षष्ठ अध्ययन
रोटी आदि भी पानी में भिगोकर खाने रूप आयम्बिल किया जाता है। विशेष - एकासन, एक स्थान में लिलोती वर्जन अनिवार्य नहीं, किन्तु आयम्बिल, नीवि में तो चारों खन्ध त्याग की परम्परा है। आयम्बिल की विधि में पानी में भिगोकर खाना बताया गया है। . __ आयम्बिल में आठ आगार माने गये हैं। आठ में से पांच आगार तो पूर्व प्रत्याख्यानों के समान ही हैं। केवल तीन आगार ही नवीन हैं। उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - ..
लेपालेप - लेप आदि लगे हुए बर्तन आदि से दिया हुआ आहार ग्रहण करना। लेपालेप शब्द लेप और अलेप से मिल कर बना है। लेप का अर्थ है - आयम्बिल में ग्रहण न करने योग्य शाक, घृत आदि से पहले लिप्त होना और अलेप का अर्थ है - बाद में उसको पोंछ कर अलिप्त कर देना। पोंछ देने पर विगय का कुछ न कुछ अंश लिप्त रहता ही है। अतः आयम्बिल में लेपालेप का आगार रखा जाता है।
उत्क्षिप्त विवेक - ऊपर रखे हुए गुड़-शक्कर आदि को उठा लेने पर उनका कुछ अंश जिसमें लगा रह गया हो ऐसी रोटी आदि लेना।
गृहस्थ संसृष्ट - घी, तेल आदि से चिकने हाथों से गृहस्थ द्वारा दिया हुआ आहार पानी तथा दूसरे चिकने आहार का जिसमें लेप लग गया हो ऐसा आहार पानी ग्रहण करना।
७. उपवास (चौविहार) उग्गए सूरे, अभत्तटुं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं-असणं, पाणं, खाइम, साइमं। अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पारिट्ठावणियागारेणं०, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। . । कठिन शब्दार्थ - अभत्तटुं - अभक्तार्थ-उपवास।
भावार्थ - सूर्योदय से उपवास ग्रहण करता हूँ। फलतः अशन, पान, खादिम, स्वादिम चारों ही प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार, सर्वसमाधि-प्रत्ययाकार-उक्त पाँच आगारों के सिवाय सब प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ।
विवेचन - भक्त का अर्थ भोजन है। जिस व्रत में भक्त का प्रयोजन नहीं है वह है
० "पारिद्वावणियागारेणं" श्रावक को नहीं बोलना चाहिए।
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