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________________ प्रत्याख्यान - प्रत्याख्यान सूत्र १३३ भावार्थ - एकाशन रूप एक स्थान एक आसन से स्थित होकर भोजन करने का व्रत ग्रहण करता हूँ। फलतः अशन, खादिम और स्वादिम, तीनों आहार का त्याग करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, सागारिकाकार, गुर्वभ्युत्थान, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्ययाकार-उक्त सात आगारों के सिवा पूर्णतया आहार का त्याग करता हूँ। विवेचन - यह एकस्थान प्रत्याख्यान का सूत्र है। एकस्थान अन्तर्गत 'स्थान' शब्द 'स्थिति' का वाचक है। अतः एकस्थान का फलितार्थ है - 'दाहिने हाथ एवं मुख के अतिरिक्त शेष सब अंगों को हिलाए बिना दिन में एक ही आसन से और एक ही बार भोजन करना।' अर्थात् भोजन प्रारंभ करते समय जो स्थिति हो, जो अंगविन्यास हो, जो आसन हो, उसी स्थिति, अंगविन्यास एवं आसन से बैठे रहना चाहिए। .. एकस्थान की अन्य सब विधि 'एगासण' के समान है। केवल हाथ, पैर आदि के . आकुंचन प्रसारण का आगार नहीं रहता। इसीलिए प्रस्तुत पाठ में 'आउंटणपसारणेणं' का उच्चारण नहीं किया जाता। ६. आयम्बिल आयंबिलं पच्चक्खामि, अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, उक्खित्तविवेगेणं, गिहत्थसंसटेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। कठिन शब्दार्थ - आयंबिलं - आचाम्ल तप, लेवालेवेणं - लेपालेप, उक्खित्तविवेगेणं- उत्क्षिप्त विवेक, गिहित्थसंसटेणं - गृहस्थसंसृष्ट। भावार्थ - आज के दिन आयंबिल अर्थात् आचाम्ल तप ग्रहण करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, उत्क्षिप्त विवेक, गृहस्थ संसृष्ट, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार - उक्त पाठ आगारों के अतिरिक्त आहार का त्याग करता हूँ। - विवेचन - आचाम्ल व्रत (आयंबिल) में दिन में एक बार रूक्ष, नीरस एवं विकृति (विगय) रहित आहार ही ग्रहण किया जाता है। पुराने आचार ग्रन्थों में चावल, उड़द अथवा सत्तु आदि में से किसी एक के द्वारा ही आचाम्ल करने का विधान है। आजकल भूने हुए चने (भुंगड़ा) आदि नीरस अन्न (जैसे चने की दाल आदि) को पानी में भिगोकर खाने रूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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