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________________ १३२ आवश्यक सूत्र - षष्ठ अध्ययन आसन से भोजन करना अर्थात् एक बार बैठ कर फिर न उठते हुए भोजन करना। 'एगासण' में दोनों ही अर्थ ग्राह्य है। एकाशन में अचित्त आहार-पानी ही ग्रहण करना कल्पता है जो तिविहार एकाशन करता है वह भोजन कर लेने के बाद भी इच्छानुसार अचित्त पानी पी सकता है (आजकल यह परंपरा ज्यादा प्रचलित है।) जो चौविहार एकाशन करता है वह भोजन करने के बाद उठ जाने पर पानी नहीं पीता है। ___ एकाशन में आठ आगार होते हैं। चार आगार तो पहले आ ही चुके हैं शेष चार आगार नये हैं उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - सागारिकाकार - सागरिक गृहस्थ को कहते हैं। गृहस्थ के आ जाने पर उसके सम्मुख भोजन करना साधुओं के लिए निषिद्ध है। अतः सागरिक के आने पर साधु को भोजन छोड़ कर बीच में ही उठ कर एकांत में जा कर पुनः भोजन करना पड़े तो व्रत भंग नहीं होता है। सर्प और अग्नि आदि का उपद्रव होने पर भी अन्यत्र भोजन किया जा सकता है। सागरिक शब्द से सर्पादि का भी ग्रहण किया है। गृहस्थ के लिए सागरिकाकार जिनके देखने से आहार करने की शास्त्र में मनाही है, उनके उपस्थित हो जाने पर स्थान छोड़कर दूसरी जगह चले जाना। आकुंचन प्रसारण - सुन्न पड़ जाने आदि कारण से हाथ पैर आदि अंगों को सिकोड़ना या फैलाना। गुर्वभ्युत्थान - किसी पाहुने, मुनि या गुरु के आने पर विनय, सत्कार के लिए उठना। परिष्ठापनिकाकार - अधिक हो जाने के कारण जिस आहार को परठवना पड़ता है तो परठवने के दोष से बचने के लिए उस आहार को गुरु की आज्ञा से ग्रहण कर लेना। यह आगार साधु के लिए ही है। अतः श्रावक को नहीं बोलना चाहिये। ५. एकस्थान (एकलठाणा) एगासणं एगट्ठाणं पच्चक्खामि, तिविहं * पि आहारं-असणं, खाइमं, साइमं । अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, गुरुअब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि । * यदि चौविहार करना हो, तो 'चउव्विहं' कह कर 'असणं' के बाद 'पाणं' भी कहना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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