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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
है, सदा शाश्वत है, सव्वदुक्खपहीणमग्गं - सब दुःखों के क्षय का मार्ग है, ठिया - स्थित हुए, सिझंति - सिद्ध होते हैं, बुझंति - बुद्ध होते हैं, मुच्चंति - मुक्त होते हैं, परिणिव्यायंति - निर्वाण को प्राप्त होते हैं, सव्वदुक्खाणमंतं - सब दुःखों का अन्त; तं - उस, धम्म - धर्म की, सद्धहामि - श्रद्धा करता हूँ, पत्तियामि - प्रतीति करता हूँ, रोएमि - रुचि करता हूँ, फासेमि - स्पर्शना करता हूँ, पालेमि - पालन करता हूँ, अणुपालेमि - अनुपालन करता हूँ, अब्भुट्टिओमि - उपस्थित हुआ. हूँ, विरओमि - निवृत्त हुआ हूँ, असंजमं - असंयम को, परियाणामि - जानता हूँ एवं त्यागता हूँ, संजमं - संयम को, उवसंपजामि - स्वीकार करता हूँ, अबंभं - अब्रह्मचर्य को, बंभं - ब्रह्मचर्य को, अकप्पं - अकल्प्य को, कप्पं - कल्प को, अण्णाणं - अज्ञान को, णाणं - ज्ञान को, अकिरियं - अक्रिया को, किरियं - क्रिया को, मिच्छत्तं - मिथ्यात्व को,. सम्मत्तं - सम्यक्त्व को, अबोहिं - अबोधि को, बोहिं - बोधि को, अमग्गं - उन्मार्ग को, मग्गं - मार्ग को, संभरामि - स्मरण करता हूँ, समणोऽहं - मैं श्रमण हूँ, संजय - संयमी, विरय - विरत, पडिहय - नाश करने वाला, पच्चक्खाय - त्याग करने वाला, पावकम्मो - पाप कर्मों का, अनियाणो - निदान रहित, दिट्ठिसंपन्नो - सम्यग्दृष्टि से युक्त, विवजिओ - सर्वथा रहित, अड्डाइजेसु - अढाई, दीव समुद्देसु - द्वीप समुद्रों में, पण्णरस कम्मभूमिसु - पन्द्रह कर्मभूमियों में, जावंत - जितने भी, केइ - कोई, रयहरण गुच्छ(ग) पडिग्गहधरा - रजोहरण, गोच्छक, पात्र के धारक हैं, पंच महव्ययधरा - पाँच महाव्रत के धारक, अट्ठारस सहस्स सीलंग( रह) धरा - अठारह हजार शीलाङ्ग के धारक, अक्खयायार चरित्ता - अक्षतपरिपूर्ण आचार रूप चारित्र के धारक, सिरसा - शिर से।
भावार्थ - भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर स्वामी पर्यन्त चौबीस तीर्थंकर देवों को नमस्कार करता हूँ।
यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य है, अनुत्तर - सर्वोत्तम है, केवल अद्वितीय है अथवा केवलज्ञानियों से प्ररूपित है, प्रतिपूर्ण है, नैयायिक - मोक्ष पहुंचाने वाला है अथवा न्याय से युक्त है, पूर्ण शुद्ध अर्थात् सर्वथा निष्कलंक है, माया आदि शल्यों को नष्ट करने वाला है, सिद्धिमार्ग - पूर्ण हितार्थ रूप सिद्धि की प्राप्ति का उपाय है, मुक्तिमार्ग है, निर्याण-मार्ग-मोक्ष स्थान का मार्ग है, निर्वाण मार्ग - पूर्ण शांति रूप निर्वाण का मार्ग है । अवितथ - मिथ्यात्व रहित है, अविसंधि - विच्छेद रहित अर्थात् सनातन नित्य है तथा पूर्वापर विरोध रहित है, सब दुःखों का क्षय करने का मार्ग है।
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