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प्रतिक्रमण - तेतीस बोल का पाठ
८. लक्षण शास्त्र । ये आठ सूत्र रूप, आठ वृत्तिरूप और आठ वार्तिकरूप, कुल चौबीस हुए २५. विकथा अनुयोग २६. विद्या अनुयोग २७. मंत्र अनुयोग २८. योग अनुयोग और २९. अन्य तीर्थिक प्रवर्तनानुयोग |
महामोहणीयठाणेहिं ( महामोहनीय के स्थान )
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के तीस भेद इस प्रकार हैं -
१. त्रस जीव को जल में डुबा कर मारे ।
२. त्रस जीव को श्वास रूंध कर मारे ।
३. त्रस जीवों को मकान, बाड़े आदि में बन्द कर अग्नि या धुएँ से घोंट कर मारे ।
४. तलवारादि शस्त्र से मस्तकादि अंगोपांग काटे ।
मोहनीय कर्म बंध के हेतुभूत कारणों
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५. मस्तक पर गीला चमड़ा बांध कर मारे ।
६. ठगाई, धोखाबाजी, धूर्तता से दण्ड फलक आदि के द्वारा मार कर दूसरे का उपहास करे तथा विश्वासघात करे ।
७. कपट करके अपना दुराचार छिपावे, सूत्रार्थ छिपावे ।
८. आप कुकर्म करे और दूसरे निरपराधी मनुष्य पर आरोप लगावे तथा दूसरे की यशः कीर्ति घटाने के लिये झूठा कलंक लगावे ।
९. सत्य को दबाने के लिए मिश्र वचन बोले, सत्य का अपलाप करे तथा क्लेश बढ़ावे ।
१०. राजा का मंत्री होकर राजा की लक्ष्मी हरण करना चाहे, राजा की रानी से कुशील सेवन करना चाहे, राजा के प्रेमीजनों के मन को पलटना चाहे तथा राजा को राज्याधिकार से हटाना चाहे ।
११. विषय- लम्पट हो कर ( शादी किया हुआ होते हुए) भी अपने को कुँवारा बतावे । १२. ब्रह्मचारी नहीं होते हुए भी अपने को ब्रह्मचारी बतावे |
१३. जो नौकर, स्वामी की लक्ष्मी लूटे तथा लुटावे ।
१४. जिस पुरुष ने अपने को धनवान् इज्जतवान् अधिकारी बनाया, उस उपकारी से ईर्षा करे, बुराई करे, हलका बताने की चेष्टा करे, उपकार का बदला अपकार से देवे ।
१५. भरणपोषण करने वाले राजादि के धन में लुब्ध हो कर राजा का तथा ज्ञानदाता गुरु का हनन करे ।
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१६. राजा, नगर-सेठ तथा मुखिया और बहुल यश वाले इन तीनों में से किसी का हनन करे ।
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