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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
१९-२४. छह काय जीवों की रक्षा २५. संयमयोग युक्तता २६ वेदनाऽभिसहना तितिक्षा अर्थात् शीतादि कष्ट सहिष्णुता २७. मारणांतिक उपसर्ग को भी समभाव से सहना । समवायांग सूत्र में सत्ताईस गुण इस प्रकार हैं- पांच महाव्रत, पांच इन्द्रियों का निरोध, चार कषायों का त्याग, भाव सत्य, करण सत्य, योग सत्य, क्षमा, विरागता, मनः समाहरणता, वचन समाहरणता, काय समाहरणता, ज्ञान संपन्नता, दर्शन संपन्नता, चारित्र सम्पन्नता, वेदनातिसहनता, मारणांतिकातिसहनता ।
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'आचार एव आचारप्रकल्पः '
(आचार्य
आयारम्पकपेहिं ( आचार-प्रकल्प ) हरिभद्र) आचार ही आचार-प्रकल्प कहलाता है। आचार्य अभयदेव समवायांग सूत्र की टीका में कहते हैं कि आचार का अर्थ प्रथम अंग सूत्र है। उसका प्रकल्प अर्थात् अध्ययन विशेष निशीथ सूत्र आचार - प्रकल्प कहलाता है। अथवा ज्ञानादि साधु आचार का प्रकल्प अर्थात् व्यवस्थापन आचार - प्रकल्प कहा जाता है।
आचारांग सूत्र के शस्त्र परिज्ञा आदि २५ अध्ययन हैं और निशीथ सूत्र भी आचारांग सूत्र की चूलिका स्वरूप माना जाता है अतः उसके तीन अध्ययन मिला कर आचारांग सूत्र के सब अट्ठाईस अध्ययन होते हैं
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२९ भेद इस प्रकार हैं -
१. शस्त्र परिज्ञा २. लोक विजय ३. शीतोष्णीय ४. सम्यक्त्व ५. लोकसार ६. धूताध्ययन ७. महापरिज्ञा ८. विमोक्ष ९. उपधान श्रुत १०. पिण्डैषणा ११. शय्यैषणा १२. ईर्या १३. भाषा १४. वस्त्रैषणा १५. पात्रैषणा १६. अवग्रह प्रतिमा (१६+७ = २३) सप्त स्थानादि सप्तैकका २४. भावना २५. विमुक्ति २६. उद्घात २७. अनुद्घात और २८. आरोपण ।
समवायांग सूत्र में आचारप्रकल्प के २८ भेद इस प्रकार हैं -
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१. एक मास का प्रायश्चित्त २. एक मास और पांच दिन का ३. एक मास और दस दिन का । इसी प्रकार पाँच-पाँच दिन बढ़ाते हुए चार महीनें पच्चीस दिन तक कहना चाहिए । इस प्रकार पच्चीस उद्घातिक आरोपणा है, २६. अनुद्घातिक आरोपणा २७. कृत्स्न (सम्पूर्ण) आरोपणा और २८. अकृंत्स्न (अपूर्ण) आरोपणा ।
पावसुयम्पसंगेहिं (पापश्रुत प्रसंग )
समवायांग सूत्र के अनुसार पापश्रुत के
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१. भूमिकम्प शास्त्र २. उत्पात् शास्त्र ३. स्वप्न शास्त्र ४. अंतरिक्ष- आकाश शास्त्र ५. अंगस्फुरण शास्त्र ६. स्वर शास्त्र ७ व्यंजन- शरीर पर के तिल-भसादि चिह्न शास्त्र
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