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प्रतिक्रमण - तेतीस बोल का पाठ
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तीसरे महाव्रत की पांच भावना - १. निर्दोष स्थानक याच कर लेना २. तृण आदि याच कर लेना ३. स्थानक आदि की क्षेत्र सीमा निर्धारण पूर्वक आज्ञा लेना ४. रत्नाधिक की आज्ञा से तथा आहार का संविभाग करके आहार करना ५. उपाश्रय में रहे हुए संभोगी साधुओं से आज्ञा लेकर रहना तथा भोजनादि करना।
चौथे महाव्रत की पांच भावना - १. स्त्री, पशु, नपुंसक सहित स्थानक में ठहरना नहीं २. स्त्री सम्बन्धी कथा वार्ता करना नहीं ३. स्त्री के अंगोपांग, राग दृष्टि से देखना नहीं ४. पहले के काम-भोग याद करना नहीं और ५. सरस तथा बल-वर्धक आहार करना नहीं।
पांचवें महाव्रत की पांच भावना - १. अच्छे शब्द पर राग और बुरे शब्द पर द्वेष करना नहीं, वैसे ही २. रूप पर ३. गंध पर ४. रस पर और ५. स्पर्श पर रागद्वेष नहीं करना।
दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेहिं (दशाकल्प व्यवहार उद्देशनकाल) - दशाश्रुतस्कंध सूत्र के दश उद्देशक, बृहत्कल्प के छह उद्देशक और व्यवहार के दश उद्देशक- इस प्रकार सूत्रत्रयी के छब्बीस उद्देशक होते हैं। जिस श्रुतस्कंध या अध्ययन के जितने उद्देशक होते हैं उतने ही वहां उद्देशनकाल अर्थात् श्रुतोपचार रूप उद्देशावसर होते हैं।
__ अणगारगुणेहिं (अनगार के गुण) - आचार्य हरिभद्र ने आवश्यकसूत्र की टीका में . अनगार के २७ गुण इस प्रकार कहे हैं -
. १-५. अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पांच महाव्रतों का सम्यक् पालन करना।
६. रात्रिभोजन का त्याग करना। ७-११. पांचों इन्द्रियों को वश में रखना। १२. भावसत्य - अन्तःकरण की शुद्धि। १३. करण सत्य - वस्त्र पात्र आदि की भलीभांति प्रतिलेखना करना। १४.. क्षमा। १५. विरागता-लोभ निग्रह। १६. मन की शुभ प्रवृत्ति। १७. वचन की शुभ प्रवृत्ति। १८. काय की शुभ प्रवृत्ति।
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