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प्रतिक्रमण - तेतीस बोल का पाठ momoommamimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmon
परमाहम्मिएहिं (परमाधार्मिक) - परम अधार्मिक, पापाचारी, क्रूर एवं निर्दय असुरजाति के पन्द्रह देवों के नाम इस प्रकार हैं - १: अम्ब २. अम्बरीष ३. श्याम ४. सबल ५. रौद्र ६. महारौद्र ७. काल ८. महाकाल ९. असिपत्र १०. धनु ११. कुम्भ १२. वालुक १३. वैतरणी १४. खरस्वर १५. महाघोष। ये पन्द्रह परमाधार्मिक देव हैं।
गाहासोलसएहिं (गाथा षोडशक) - सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के गाथा षोडशक - सोलह अध्ययन इस प्रकार हैं -
१. समय २. वैतालीय ३. उपसर्ग परिज्ञा ४. स्त्री परिज्ञा ५. नरक विभक्ति ६. महावीर स्तुति ७. कुशील परिभाषित ८. वीर्य ९. धर्म १०. समाधि ११. मार्ग १२. समवसरण १३. यथातथ्य १४. ग्रन्थ १५. आदानीय १६. गाथा।
असंजमे (असंयम) - मन, वचन और काया की सावध व्यापार में प्रवृत्ति होना असंयम है। समवायांग सूत्र में वर्णित सतरह असंयम इस प्रकार हैं - ___ १-९. पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय
और पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा करना, कराना, अनुमोदन करना। ... १०. अजीव असंयम -अजीव होने पर भी जिन वस्तुओं के द्वारा असंयम होता है, उन बहुमूल्य वस्त्र, पात्र आदि का ग्रहण करना अजीव असंयम है।
११. प्रेक्षा असंयम - जीव सहित स्थान में उठना, बैठना, सोना आदि। १२. उपेक्षा असंयम - गृहस्थ के पाप कर्मों का अनुमोदन करना। १३. अपहृत्य असंयम - अविधि से परठना। इसे परिष्ठापना असंयम भी कहते हैं। १४. प्रमार्जना असंयम - वस्त्र पात्र आदि का प्रमार्जन न करना। १५. मनः असंयम - मन में दुर्भाव रखना। . १६. वचन असंयम - कुवचन बोलना।। १७. काय असंयम - गमनागमनादि में असावधान रहना।
अबभेहि (अब्रह्मचर्य) - समवायांग सूत्र में अब्रह्मचर्य के अठारह भेद इस प्रकार कहे हैं - देव संबंधी भोगों का मन, वचन और काया से स्वयं सेवन करना, दूसरों से सेवन कराना तथा सेवन करते हुए को भला जानना - इस प्रकार नौ भेद वैक्रिय शरीर संबंधी होते हैं। मनुष्य तथा तिर्यच संबंधी औदारिक भोगों के भी इसी तरह नौ भेद समझ लेने चाहिए। कुल मिलाकर ये अठारह भेद होते हैं।
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