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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
इन तीन में से एक ज्ञान होता है। चलायमान हो जाय तो पागल बन जाय, दीर्घकाल का रोग हो जाय और केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाय।
इन कुल बारह प्रतिमाओं का काल ७ मास २८ दिन का है।
किरियाठाणेहिं (क्रिया स्थान) - यहां क्रिया का अर्थ कार्य है। तेरह क्रिया स्थान इस प्रकार है -
१. अर्थ क्रिया - 'अर्थाय क्रिया अर्थक्रिया' - अपने किसी अर्थ - प्रयोजन के लिए त्रस स्थावर जीवों की हिंसा करना, कराना तथा अनुमोदन करना। २. अनर्थ क्रिया - बिना किसी प्रयोजन के किया जाने वाला पापं कर्म अनर्थ क्रिया कहलाता है। व्यर्थ ही किसी को सताना, पीड़ा देना। ३. हिंसा क्रिया - अमुक व्यक्ति मुझे अथवा मेरे स्नेहियों को कष्ट देता है, देगा अथवा दिया है - यह सोच कर किसी प्राणी की हिंसा करना हिंसा क्रिया है। ४. अकस्मात् क्रिया - शीघ्रतावश बिना जाने हो जाने वाला पाप, अकस्मात् क्रिया . है। बाणादि से अन्य की हत्या करते हुए अचानक ही अन्य किसी की हत्या हो जाना। ५. दृष्टि विपर्याय क्रिया - मति-भ्रम से होने वाला पाए। चोरादि के भ्रम से साधारण अनपराधी पुरुष को दण्ड दे देना। ६. मृषा क्रिया - झूठ बोलना। ७. अदत्तादान क्रिया - चोरी करना। ८. अध्यात्म क्रिया - बाह्य निमित्त के बिना मन में होने वाला शोक आदि का दुर्भाव। ९. मान क्रिया - अपनी प्रशंसा करना, घमण्ड करना। १०. मित्र क्रिया - प्रियजनों को कठोर दण्ड देना। ११. माया क्रिया - दम्भ करना। १२. लोभ क्रिया - लोभ करना। १३. ईर्यापथिकी क्रिया - अप्रमत्त विवेकी संयमी को गमनागमन से लगने वाली क्रिया।
भूयगामेहिं (भूतग्राम) - भूतग्राम यानी जीव समूह। सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय - इन सातों के अपर्याप्त और पर्याप्त ये कुल चौदह भेद भूतग्राम के होते हैं।
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