________________
प्रतिक्रमण - तेतीस बोल का पाठ
६. ब्रह्मचर्य प्रतिमा - अतिचार रहित पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करे। यह प्रतिमा जघन्य एक, दो, तीन दिन, उत्कृष्ट छह मास की है। ७. सचित्त त्याग प्रतिमा - सचित्त वस्तु नहीं भोगे। यह प्रतिमा जघन्य एक, दो, तीन दिन, उत्कृष्ट सात मास की है। ८. आरंभ-त्याग प्रतिमा - स्वयं आरंभ नहीं करे। यह प्रतिमा जघन्य एक, दो, तीन दिन, उत्कृष्ट आठ मास की है। ९. प्रेष्य प्रतिमा - दूसरे से भी आरम्भ नहीं करावे। यह प्रतिमा जघन्य एक, दो, तीन दिन, उत्कृष्ट नव मास की है। १०. उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा - अपने वास्ते आरंभ करके कोई वस्तु देवे, तो लेवे नहीं। खुरमुण्डन करावे या शिखा रखे। कोई उनसे संसार सम्बन्धी कोई बात एक-बार पूछे या बार-बार पूछे, तब जानता होवे, तो 'हाँ' कहे और नहीं जानता होवे तो 'ना' कहे। यह प्रतिमा जघन्य एक, दो, तीन दिन, उत्कृष्ट दस मास की है। ११. श्रमणभूत प्रतिमा - खुरमुण्डन करावे, या लोच करे। साधु जितना ही उपकरण, पात्र, रजोहरणादि रखे। स्वज्ञाति की गोचरी करे और कहे कि 'मैं श्रावक हूँ।' साधु के समान उपदेश देवे। यह प्रतिमा उत्कृष्ट ग्यारह मास की है।
सभी प्रतिमाओं में साढ़े पांच वर्ष लगते हैं। भिक्खुपडिमाहिं (भिक्षु प्रतिमा) - बारह भिक्षु प्रतिमाओं का यथा शक्ति आचरण न करना श्रद्धा न करना तथा प्ररूपणा न करना अतिचार है। भिक्षु प्रतिमा के नाम इस प्रकार हैं - १. एक मासिकी भिक्षु प्रतिमा २. दो मासिकी भिक्षु प्रतिमा ३. तीन मासिकी भिक्षु प्रतिमा ४. चार मासिकी भिक्षु प्रतिमा ५. पाँच मासिकी भिक्षु प्रतिमा ६. छह मासिकी भिक्षु प्रतिमा ७. सात मासिकी भिक्षु प्रतिमा ८. प्रथमा सप्त रात्रि दिवा भिक्षु प्रतिमा ९. द्वितीया सप्त रात्रि दिवा भिक्षु प्रतिमा १०. तृतीया सप्त रात्रि दिवा भिक्षु प्रतिमा ११. अहो रात्रि की भिक्षु पडिमा १२. एक रात्रि की भिक्षु प्रतिमा। भिक्षु की बारह प्रतिमायें नीचे लिखे हुए चौदह नियम से होती है। पहली प्रतिमा एक मास की है, जिसका पालन इस प्रकार होता है -.
१. शरीर पर ममता नहीं रखे, शरीर की शुश्रूषा नहीं करे। देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी उपसर्ग समभाव से सहन करे।
० पूर्वाचार्यों ने प्रतिमाधारियों का रजोहरण बिना निशिथिये का होना बताया है, जो उचित है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org