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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
अगली प्रतिमाओं में अन्न व पानी की दाति में बढ़ोतरी होगी लेकिन बाकी नियम प्रथम प्रतिमा अनुसार पालन करना होता है। आठवीं व ऊपर की प्रतिमाओं में तपस्या आदि का विधान है, बाकी नियम पूर्ववत् पालन करना होता है।
२. एक दाति आहार और एक दाति पानी, प्रासुक तथा एषणिक लेवे। (दाति-धार-एक साथ, धारखण्डित हुए बिना जितना पात्र में पड़े, उतने को 'दाति' कहते हैं)।
___३. प्रतिमाधारी साधु, गोचरी के लिए दिन के तीन विभाग करे और तीन विभागों में से चाहे जिस एक विभाग में गोचरी करे।
४. प्रतिमाधारी साधु, छह प्रकार से गोचरी करे - १. पेटी के आकारे २. अर्ध पेटी के आकारे ३. बैल के मूत्र के आकारे ४. जिस प्रकार पतंगिया क्रमशः फूलों पर नहीं बैठता हुआ छुट कर फूलों से मकरंद ग्रहण करता है इस प्रकार गोचरी करे ५. शंखावर्तन और ६. जाते हुए करे, तो आते हुए नहीं करे और आते हुए करे, तो जाते हुए नहीं करे।
५. गांव के लोगों को मालूम हो जाय कि 'यह प्रतिमाधारी मुनि है, तो वहाँ एक रात ही रहे और ऐसा मालूम नहीं हो, तो दो रात्रि रहे। उपरान्त जितनी रात रहे उतना प्रायश्चित्तं का भागी बने। . ६. प्रतिमाधारी साधु, चार कारण से बोलते हैं - १. याचना करते २. मार्ग पूछते ३. आज्ञा प्राप्त करते और ४. प्रश्न का उत्तर देते।
७. प्रतिमाधारी साधु, तीन स्थान में निवास करे - १. बाग -बगीचा २. श्मशान-छत्री ३. वृक्ष के नीचे। इनकी याचना करे।
. ८. प्रतिमाधारी साधु, तीन प्रकार की शय्या ले सकते हैं - १. पृथ्वी शिला २. काष्ठ पटीया ३. यथासंस्तृत (पहले से बिछी हुई)।
९. प्रतिमाधारी साधु, जिस स्थान में हैं, वहाँ स्त्री आदि आवे, तो भय के मारे बाहर निकले नहीं। कोई बरबस हाथ पकड़ कर निकाले, तो ईर्यासमिति सहित बाहर हो जावे तथा वहाँ आग लगे तो भी भय से बाहर आवे नहीं, कोई बाहर निकाले, तो ईर्यासमिति पूर्वक बाहर निकल जावे।
१०. प्रतिमाधारी साधु के पाँव में काँटा लग जाय अथवा आँख में कांटा (धूल तृण आदि) गिर जावे, तो आप उसे अपने हाथों से निकाले नहीं।
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