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________________ आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन ३. निषद्यानुपवेशन - स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठे, उसके उठ जाने पर भी एक मुहूर्त तक उस आसन पर न बैठे। ४. स्त्री अंगोपांग दर्शन - स्त्रियों के मनोहर अंग उपांग न देखे। यदि कभी अकस्मात् दृष्टि पड़ जाय तो सहसा हटा ले, फिर उसका ध्यान न करे। ५. कुड्यान्तर शब्द श्रवणादि वर्जन - दीवार आदि की आड़ से स्त्री के शब्द, गीत, रूप आदि न सुने और न देखे। ६. पूर्वभोगाऽस्मरण - पहले भोगे हुए भोगों का स्मरण न करे। ७. प्रणीत भोजन-त्याग - विकारोत्पादक गरिष्ठ भोजन न करे। ८. अतिमात्र भोजन-त्याग - रूखा सूखा भोजन भी अधिक न करे। ९. विभूषा परिवर्जन - अपने शरीर की विभूषा-सजावट न करे। समणधभ्मे (श्रमण धर्म) - दशविध श्रमण धर्म का वर्णन पूर्व में पृ० २३ पर दिया जा चुका है। उवासगपडिमाहिं (उपासक प्रतिमा) - उपासक का अर्थ श्रावक होता है और प्रतिमा का अर्थ - प्रतिज्ञा - अभिग्रह है। उपासक की प्रतिमा, उपासक-प्रतिमा कहलाती है। ये ग्यारह हैं - १. दर्शन प्रतिमा - शुद्ध, अतिचार रहित समकित धर्म पाले। यह प्रतिमा एक मास की है। २. व्रत प्रतिमा - नाना प्रकार के व्रत-नियमों का अतिचार रहित पालन करे। यह प्रतिमा दो मास की है। ३. सामायिक प्रतिमा - सदैव अतिचार-रहित सामायिक करे। यह प्रतिमा तीन मास की है। ४. पौषध प्रतिमा - अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्यों का अतिचार रहित पौषध करे। यह प्रतिमा चार मास की है। ५. कायोत्सर्ग प्रतिमा - सदैव रात्रि में कायोत्सर्ग करे और पांच बातों का पालन करे - १. स्नान नहीं करे २. रात्रि भोजन त्यागे ३. धोती की लांग खुली रखे ४. दिन को ब्रह्मचर्य पाले और ५. रात्रि को ब्रह्मचर्य का परिमाण करे। यह प्रतिमा जघन्य एक, दो, तीन दिन, उत्कृष्ट पांच मास की है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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