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प्रतिक्रमण - तेतीस बोल का पाठ
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३. आदानभय - अपनी वस्तु की रक्षा के लिए चोर आदि से डरना। ४. अकस्मात्भय - किसी बाह्य निमित्त के बिना अपने आप ही सशंक हो कर रात्रि आदि में अचानक डरने लगना।। ५. आजीविकाभय - दुर्भिक्ष आदि में जीवन यात्रा के लिए भोजन आदि की अप्राप्ति के दुर्विकल्प से डरना*। ६. मरणभय - मृत्यु से डरना।
७. अश्लोकभय - अपयश की आशंका से डरना। - मयहाणेहिं (मद स्थान) - 'मदो नाम मानोदयादात्मोत्कर्ष परिणामः। स्थानानि तस्यैव पर्याया भेदाः।' अर्थात् मान मोहनीय कर्न के उदय से होने वाले आत्मा के परिणाम विशेष को मद कहते हैं। ये त्याज्य हैं। समवायांग सूत्र के अनुसार आठ मद स्थान इस प्रकार हैं
१. जाति मद - ऊंची और श्रेष्ठ जाति का अभिमान। २. कुल मद - ऊंचे कुल का अभिमान। ३. बल मद - अपने बल का घमण्ड करना। ४. रूप मद - अपने रूप, सौन्दर्य का गर्व करना। ५. तप मद - उग्र तपस्वी होने का अभिमान। ६. श्रुत मद - शास्त्राभ्यास का अर्थात् पण्डित होने का अभिमान। ७. लाभ मद - अभीष्ट वस्तु के मिल जाने पर अपने लाभ का अहंकार। ८. ऐश्वर्य मद - अपने ऐश्वर्य अर्थात् प्रभुत्व का अहंकार।
मान मोहनीय कर्म के उदय से जन्य ये आठों ही मद सर्वथा त्याज्य हैं। बंभचेर गुत्तिहिं - उत्तराध्ययन सूत्र के १६वें अध्ययन के अनुसार ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियां इस प्रकार हैं - -- १. विविक्त वसति सेवन - स्त्री, पशु और नपुंसकों से युक्त स्थान में न ठहरे।
२. स्त्रीकथा परिहार - स्त्रियों की कथावार्ता सौन्दर्य आदि की चर्चा न करे।
* ठाणांग सूत्र में आजीविका के स्थान पर वेयणा भय (वेदना या पीड़ा का भय)है। समवायांग सूत्र में विवेचन उपरोक्त अनुसार है।
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