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. प्रतिक्रमण - तेतीस बोल का पाठ
अर्थात् प्राणातिपात आदि पापों से निवृत्त रहने के लिए प्रशस्त एकाग्रतापूर्वक की जाने वाली आगमोक्त सम्यक् प्रवृत्ति समिति कहलाती है। समिति के पांच प्रकार इस प्रकार हैं - . १. इरियासमिइए (ईर्यासमिति) - युग परिमाण भूमि को एकाग्रचित्त से देखते हुए,
जीवों को बचाते हुए यतनापूर्वक गमनागमन करना, ईर्यासमिति है। २. भासासमिइए (भाषासमिति) - आवश्यकता होने पर भाषा के दोषों का परिहार करते हुए यतना पूर्वक भाषण में प्रवृत्ति करना फलतः हित, मित, सत्य एवं स्पष्ट वचन कहना भाषासमिति कहलाती है। ३. एसणासमिए (एषणा समिति) - गोचरी के ४२ दोषों को टालते हुए शुद्ध आहारपानी तथा वस्त्र, पात्र, उपधि ग्रहण करना एषणा समिति है। ४. आयाणभंडमत्त णिक्खेवणा समिए (आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति) - वस्त्र, पात्र, पुस्तक आदि भाण्ड मात्र - उपकरणों को उपयोगपूर्वक आदान = ग्रहण करना एवं जीव रहित प्रमार्जित भूमि पर निक्षेपण = रखना आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति होती है। ५. उच्चार पासवण खेल जल्ल सिंघाण परिट्ठावणिया समिए (उच्चार प्रस्रवण खेल जल्ल सिंघाण परिष्ठापनिका समिति) - मल, मूत्र, कफ, शरीर का मल, नाक का मल आदि परठने योग्य वस्तुओं को जीवरहित एकांत स्थण्डिल भूमि में यतनापूर्वक परठना, परिष्ठापनिका समिति है।
जीवणिकाएहिं (जीव निकायों से) - जीवनिकाय शब्द, जीव और निकाय - इन दो शब्दों से बना है। जीव का अर्थ है - चैतन्य = आत्मा और निकाय का अर्थ है - राशि अर्थात् समूह । जीवों की राशि को जीवनिकाय कहते हैं। जीवनिकाय छह हैं -
१. पुढवीकाएणं (पृथ्वीकाय) - जिन जीवों का शरीर पृथ्वी रूप हैं, वे पृथ्वीकाय कहलाते हैं। २. आउकाएणं (अप्काय) - जिन जीवों का शरीर जल रूप हैं, वे अपकाय कहलाते हैं। ३. तेउकाएणं (तेजस्काय) - जिन जीवों का शरीर अग्निरूप हैं, वे तेजस्काय कहलाते हैं।
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