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प्रतिक्रमण - तेतीस बोल का पाठ
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३. धर्मध्यान - वीतराग की आज्ञा रूप धर्म से युक्त ध्यान को धर्मध्यान कहते हैं। अथवा आगम के पठन व्रतधारण, बंध मोक्षादि, इन्द्रिय दमन तथा प्राणियों पर दया करने के चिंतन को धर्मध्यान कहते हैं। . ४. शुक्लध्यान - कर्ममल को शोधन करने वाला तथा शोक को दूर करने वाला ध्यान शुक्लध्यान है। जिसकी इन्द्रियां विषयवासना रहित हों, संकल्प विकल्प आदि
दोषयुक्त जो तीन योग हैं उनसे रहित महापुरुष के ध्यान को शुक्लध्यान कहते हैं। किरियाहिं (क्रियाओं से) - कर्मबंधन कराने वाली चेष्टा अर्थात् हिंसा प्रधान दुष्ट व्यापार विशेष को क्रिया कहते हैं। मूल क्रियाएं पांच हैं। विस्तार से क्रिया के २५ भेद माने गये हैं। पांच भेद इस प्रकार हैं -
१. काइयाए (कायिकी) - काय के द्वारा होने वाली क्रिया कायिकी क्रिया कहलाती है। . २. अहिगरणियाएं (आधिकरणिकी) - जिसके द्वारा आत्मा नरक आदि दुर्गति का अधिकारी होता है वह दुर्मंत्रादि का अनुष्ठान विशेष अथवा घातक शस्त्र आदि 'आधिकरण' कहलाता है। आधिकरण से लगने वाली क्रिया आधिकरणिकी क्रिया कहलाती है। ३. पाउसियाए (प्राद्वेषिकी) - प्रद्वेष का अर्थ है - मत्सर, डाह, ईर्षा। जीव तथा अजीव किसी भी पदार्थ के प्रति द्वेष भाव रखना, प्राद्वेषिकी क्रिया कहलाती है। ४..परियावणियाए (पारितापनिकी) - ताड़न आदि के द्वारा दिया जाने वाला दु:ख 'परितापन' कहलाता है। परितापन से निष्पन्न होने वाली क्रिया पारितापनिकी क्रिया कहलाती है। ५. पाणाइवाइयाए (प्राणातिपातिकी) - प्राणों का अतिपात - विनाश 'प्राणातिपात' कहलाता है। प्राणातिपात से होने वाली क्रिया प्राणातिपातिकी क्रिया कहलाती है।
कामगुणेहिं (कामगुणों से) - काम का अर्थ है - विषयभोग। काम के साधनों - शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श को कामगुण कहते हैं। कामगुण में 'गुण' शब्द श्रेष्ठता का वाचक न होकर केवल बंध हेतु वाचक है। ___ महव्वएहिं (महाव्रतों से) - अहिंसा, सत्य, अस्तेय - चोरी का त्याग, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह - ये जब मर्यादित - सीमित रूप से ग्रहण किये जाते हैं तब अणुव्रत कहलाते हैं।
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