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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
१. स्त्रीकथा - अमुक देश, जाति, कुल की अमुक स्त्री सुंदर अथवा कुरूप होती है। वह बहुत सुंदर वस्त्राभूषण पहनती है। गाना भी बहुत सुंदर गाती है। इत्यादि विचार से . ब्रह्मचर्य आदि व्रतों में दोष लगने की संभावना होने से इसको अतिचार का हेतु माना गया है।
२. भक्तकथा - भक्त कथा चार प्रकार की कही गई है - १. आवाप - अमुक रसोई में इतना घी, इतना शाक, इतना मसाला ठीक रहेगा। २. निर्वाप - इतने पकवान थे, इतना शाक था, मधुर था इस प्रकार देखे हुए भोज्य पदार्थ की कथा करना। ३. आरम्भ - अमुक रसोई में इतने शाक और फल आदि की जरूरत रहेगी, इत्यादि।
४. निष्ठान - अमुक भोज्य पदार्थों में इतने रुपये लगेंगे आदि।
३. देशकथा - देशों की विविध वेशभूषा, श्रृंगार रचना, भोजन पद्धति, गृह निर्माण कला, रीतिरिवाज आदि की प्रशंसा या निंदा करना देशकथा है।
४. राजकथा - राजाओं की सेना, रानियों, युद्ध कला, भोग विलास आदि का वर्णन राजकथा कहलाती है।
झाणेहिं (ध्यानों से) - अंतर्मुहूर्त काल तक स्थिर अध्यवसान एवं मन की एकाग्रता को ध्यान कहते हैं। ध्यान, प्रशस्त और अप्रशस्त रूप से दो प्रकार का होता है। आर्तध्यान और रौद्रध्यान अप्रशस्त ध्यान है तथा धर्मध्यान और शुक्लध्यान प्रशस्त ध्यान है। चार ध्यान का स्वरूप इस प्रकार है -
१. आर्तध्यान - आर्त का अर्थ है दुःख, व्यथा, कष्ट या पीड़ा। आर्त के निमित्त से जो ध्यान होता है वह आर्तध्यान कहलाता है। अनिष्ट वस्तु के संयोग से, इष्ट वस्तु के वियोग से, रोग आदि के कारण तथा भोगों की लालसा से मन में जो एक प्रकार की विकलता-सी अर्थात् पीड़ा-सी होती है और जब वह एकाग्रता का रूप धारण करती है तब आर्त्तध्यान कहलाती है। २. रौद्रध्यान - हिंसा आदि अत्यंत क्रूर विचार रखने वाला व्यक्ति रुद्र कहलाता है। रुद्र व्यक्ति के मनोभावों को रौद्रध्यान कहा जाता है अथवा छेदन, भेदन, दहन, बंधन, मारण, प्रहरण, दमन, कर्तन आदि के कारण रागद्वेष का उदय हो और दया न हो, ऐसे आत्मपरिणाम को रौद्रध्यान कहते हैं।
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