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________________ प्रकाशकीय उद्गार महामाहिम तर्कसम्राट आचार्य श्री हरिभद्रसूरि के रचे हुए योगप्रकरणों को सविवरण यहां एक समुदाय के रूप में प्रकाशित करते हुये हम आनंद महसूस कर रहे हैं । ___न्यायविशारद वर्धमान तपोनिधि पूज्यपाद स्व. आचार्यदेव श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज की हमारे पर महती कृपा रही और उन्हीं की प्रेरणा से यह ग्रन्थ की प्रथमावृत्ति प्रकाशित करने के लिये हम सशक्त बने थे । इस ग्रन्थ के प्रथम प्रकाशन में पूर्वमुद्रित जैन ग्रन्थ प्रकाशक सभा [अहमदाबाद] संस्था प्रकाशित योगदृष्टि और योगबिन्दु तथा ला. द. विद्यामंदिर, [अहमदाबाद] प्रकाशित 'योगशतक' का पूर्णरूप से उपयोग किया गया, उपरान्त ग्रन्थसंशोधन के लिये हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरपाटण और ला. द. विद्यामंदिर की योगदृष्टि-योगबिन्दु आदि प्राचीनतर हस्तप्रतों का पर्याप्त उपयोग किया गया था । इसलिये उन सभी के प्रति हम कृतज्ञता व्यक्त करते हैं । - पूज्यपाद आचार्यदेव की करुणा और शासनदेव की कृपा से आइन्दा श्रीसंघ की सेवा में अधिकाधिक उपयोगी मूल्यवान और प्राणवान प्रकाशन प्रस्तुत करते रहें यही शुभेच्छा और प्रार्थना । શ્રી ઘાટકોપર ન જેતામ્બર મૂર્તિપૂજક તપગચ્છ સંઘ, नपरोलेन. पाटओ५२ (३.) પોતાના જ્ઞાનખાતામાંથી આ પ્રકાશનનો સંપૂર્ણ લાભ લેવા બદલ ખૂબ ખૂબ ધન્યવાદ. - लि. संघसेवक कुमारपाल वि. शाह आदि समस्त ट्रस्टीगण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004175
Book TitleHaribhadra Yogbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhayshekharsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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