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में दबा दिये गये । इसी कारण हमें न केवल मूर्ति खण्ड बल्कि वेदी के खण्ड भी प्राप्त हैं ।
श्री ऋषभ दास ने बताया कि पुरानी नींव में एक के आगे एक तीन नींव के अवशेष थे । तीनों पर पलास्टर भी अलग-अलग रंग का था । उससे यह स्पष्ट है कि मन्दिर दो दफा पूर्व में तोड़ा गया व प्रत्येक बार पुनः निर्मित मन्दिर पुराने मन्दिर की नींव तोड़ कर नहीं इसके बराबर में दूसरी नींव की दीवार बनाकर बनाया गया । श्री जय कृष्ण एवं श्री चन्द्र भान ने बताय कि जो मिट्टी हटी उसकी तीन परत थीं सबसे ऊपर की परत लगभग तीन फिट ऊँची थी जिसमें ईट इत्यादि का चूरा था। दूसरी परत लगभग तीन फिट ऊँची साफी की व तीसरी परत और हटाई गई । परत १ व २ के बीच व २-३ के बीच सख्त मिट्टी का फर्स था । परत ३ व मौजूदा जमीन के बीच कुछ नहीं था अर्थात परत ३ पृथ्वी का अंग मात्र थी । यह मिट्टी मौजूदा श्वेताम्बर मन्दिर व दिगम्बर मन्दिर के बीच के रास्ते में भी फैली थी । पुरातात्विक अवशेष भूमि में नीव खोदते समय लगभग दो या ढाई फिट मौजूदा मिट्टी के स्तर से नीचे मिले। एक खड्गासन प्रतिमा भी प्राप्त है । श्री प्रकाश चन्द्र जैन पुजारी ने बताया कि उस मन्दिर के तलघर के तहखाने में यह खडगासन मूर्ति थी । कुछ अन्य ने इस मिट्टी में दबी हुई बताई है।
गोलाकार दीवार व उस गोले में मध्य से किरणों जैसी शक्ल की दीवार की मौजूदगी किसी ने नहीं बताई है । इस प्रकार दीवारें दिखाई देती हैं अगर गोलाकार स्तूप के अवशेष होते है । इस पृष्ट भूमि में वहाँ के अवशेषों का निरीक्षण करने से मूर्तियाँ देव, कुलिका के ऊपर का पत्थर, मन्दिर के लगे हुए स्तम्भ एवं मन्दिर में उपयुक्त हवादान आदि मिलते हैं । यह भी आश्चर्य है कि किस प्ररिस्थितियों में पुरानी खण्डित मूर्तियाँ मन्दिर की नींव में दबा कर रखी गयी थीं। परम्परा यह थी कि पुरानी खण्डित मुर्तियों को विसर्जित कर दिया
जाता था ।
हम इतिहास में पाते हैं कि ई. सन् १९६४ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनारस के मन्दिरों को लूटा एवं ई. सन् १९६७ में पुनः लूटा ६ । एवं तत्पश्चात मुसलमान अधिकारियों की सख्ती के कारण कुछ दशक तक मन्दिर पुनः न बन पाये ७ । यह ही वह परिस्थिती हो सकती है जब की खण्डित मूर्तियाँ मन्दिर के मलवे में दबी रह गई एवं पुनः कुछ दशक तक उन्हें निकाला नहीं गया । अन्यथा
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