________________
18. गुणिणो गुणेहि विहवेहि विहविरणो होंतु गम्विया नाम ।
दोसेहि नवरि गव्यो खलाण मग्गो च्चिय अउव्यो ।
19. संतं न देंति वारेति देतयं विनयं पि हारंति ।
परिणमित्तवइरियाणं खलाण मग्गो च्चिय अउग्यो ।
20. जेहि चिय उम्भविया जाण पसाएण निग्गयपयावा ।
समरा म्हंति विझं खलाण मग्गो चिचय प्रउव्यो ।
21. सरसा वि दुमा दावाणलेण उज्झति सुक्खसंवलिया।
दुज्जणसंगे पत्ते सुयरणो वि सुहं न पावेइ ॥
धन्ना बहिरंपलिया दो च्चिय जीवंति माणुसे लोए । न सुगंति पिसुणवयणं खलस्स रिवी न पेच्छंति ॥
23. एक्कं चिय सलहिज्जइ विणेसवियहांण नवरि निव्वहणं ।
माजम्म एक्कमेक्केहि जेहि विरहो च्चिय न विट्ठो।
24. परिवन्नं विणयरवासराण दोण्हं प्रखंडियं सुहइ ।
सूरो न विरणेण विरणा दिगो विन हु सूरविरहम्मि ॥
8 ]
[ वज्जालग्ग में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
*www.jainelibrary.org