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12. हे सज्जन ! (तुम) दूसरे के अपकार की इच्छा नहीं करते हो
तथा (तुम) सदा दूसरे का उपकार करते हो, ( तुम्हारे प्रति किए गए ) अपराधों के कारण (तुम) (किसी पर भी ) क्रोध नहीं करते हो, (अतः ) तुम्हारे स्वभाव के लिए नमस्कार ।
13.
14.
सज्जन व्यक्ति के बहुत गुरणों से भी क्या ? ( उसके ) दो गुरगों से ही ( हमारी ) तृप्ति है - ( बादलों की ) बिजली की तरह अस्थिर क्रोध (तथा) पत्थर की रेखा की तरह मित्रता ।
16.
दीन का उद्धार करना, शरण में आए हुए ( व्यक्ति के ) प्राप्त होने पर ( उसका ) प्रिय (भला) करना, ( तथा अपने प्रति किए गए ) अपराधों को भी क्षमा करना केवल सज्जन ही जानता है ।
15. पृथ्वी दो पुरुषों को धारण करती है अथवा ( यह कहा जाय कि) पृथ्वी दो के द्वारा ही धारी गई है । ( प्रथम ) उपकार में जिसकी मति है, (द्वितीय) जो ( दूसरे के द्वारा) किए गए उपकार को नहीं भूलता है ।
प्रलय में पर्वत नष्ट होते हैं (तथा) सागर भी मर्यादा छोड़ देते हैं, ( किन्तु ) उस समय में भी सज्जन कभी दिए हुए वचन को शिथिल नहीं करते हैं ।
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17. यद्यपि चन्दन - वृक्ष की तरह सज्जन विधि के द्वारा फल रहित ( पुरस्कार - रहित ) बनाए गए हैं, तो भी (वे) निज शरीर से लोक का हित करते हैं ।
जीवन-मूल्य ]
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