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से उनकी तुलना नहीं की जाती है (49)। धीर व्यक्ति अनेक सद्कार्यों में लगे हुए होने पर भी अनासक्त भाव को जीवन का आभूषण मानते हैं। वैभव के क्षय होने पर भी उनमें उदारता बनी रहती है, मरण काल में धैर्य बना रहता है, विपत्ति में भी आत्म-सम्मान जागृत रहता है (57)। उनके कार्यों का यदि समाज में मूल्य-हीन व्यक्ति विरोध करते हैं, तो वे डटकर उनका मुकाबला करते हैं (82)। आत्म सम्मान की रक्षा:
मूल्यानुरागी व्यक्ति आत्म-सम्मान रूपी लाल की सदैव रक्षा करते हैं। उनमें याचना भाव कभी उत्पन्न नहीं होता है (44)। वे बड़ी से बड़ी विपत्ति पड़ने पर भी सद् प्रयत्नों में स्थिर रहते हैं तथा
आत्मसम्मान को नहीं खोते हैं (46)। वे वस्तुओं को सम्मान से ही प्राप्त करना चाहते हैं। उनका आत्म-सम्मान स्वप्न में भी क्षीण नहीं होता है (46,65)। विनय, कृतज्ञता और गंभीरता :
मूल्य-युक्त व्यक्ति विनयवान होता है। जीवन में यदि उसको सफलता प्राप्त होती है, तो वह नम्र हो जाता है, और यदि असफलता, तो वह उत्साह से भर जाता है, जैसे महावृक्षों के शिखर फलों की प्राप्ति होने पर झुके हुए होते हैं तथा फलों के नाश होने पर ऊँचे हो जाते हैं (53)। वह रत्नाकर के समान रत्नों (गुणों) से भरा हुआ होने पर भी कभी गर्व नहीं करता है (98)। विनय से कृतज्ञता पैदा होती है । कृतज्ञता एक प्रकार की विनय ही है। मूल्यानुरागी व्यक्ति किसी के द्वारा किए गए उपकार को कभी नहीं भूलता है (15) । दुष्ट व्यक्ति अकृतज्ञ होते हैं। कवि कहता है कि जिन (विद्य पर्वतशृखलाओं) के द्वारा अनार्य ऊंचे (प्रतिष्ठित) किए गए हैं, जिनके
[ वज्जालग्ग में
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