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प्रसाद से (उनका) प्रताप बाहर फैलाया गया है, (आश्चर्य) (वे अनार्य) ही विद्य पर्वत को जलाते हैं । खलों का मार्ग ही अनोखा है (20)। मूल्यों-सहित व्यक्ति समुद्र के समान गंभीर होते हैं। कवि का कथन है कि लक्ष्मी के बिना भी रत्नाकर की गंभीरता पहिले जैसी ही बनी हुई है (96)। यद्यपि समुद्र वाडवानल(भीतरी आग)के द्वारा ग्रसित किया गया, सकल सुर-असुरों द्वारा मथा गया और लक्ष्मी के द्वारा त्यागा गया फिर भी उसकी गम्भीरता को देखो(97)। बाहर निकले हुए रत्नों के कारण भी समुद्र की तुच्छता नहीं होती है(99)। ज्ञान, अभय और उदारता :
मूल्यों को जीवन में महत्व देने वाला व्यक्ति ज्ञान के ग्रहण को राज्य से भी श्रेष्ठ मानता है (35)। उसके लिए ज्ञान के समान कोई बंधु नहीं है (39) । वह सदैव शरण में आये व्यक्ति का भला करता है (14)। और वह वैभव के क्षय होने पर भी उदारता को नहीं छोड़ता है (57)। कवि कहता है कि हे राजा ! अब हम जाते हैं, क्योंकि हे प्रभो ! तुम्हारी उदारता कभी नहीं देखी गई (63)। वचन-पालन और कुसंगति-त्याग : ___ मूल्यों-सहित व्यक्ति वचन दिए हुए कार्य को कभी शिथिल नहीं करते हैं (16) । वचन दी गई बात के पालन में वे सदैव तत्पर रहते हैं (26)। वे उन व्यक्तियों से घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं रखते हैं जो मूल्यों रहित हैं । कवि ने ठीक ही कहा है कि जिस प्रकार शुष्क घास से मिश्रित ताजे वृक्ष भी दावानल के द्वारा जला दिये जाते हैं, उसी प्रकार दुर्जन (मूल्यों रहित व्यक्ति) का साथ प्राप्त होने पर सज्जन (मूल्यों सहित व्यक्ति) भी सुख नहीं पाता है (21)। बहुत बड़े वृक्षों के बीच में चन्दन की शाखा सर्प दोष के कारण काट दी जाती
जीवन-मूल्य
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