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________________ तरह भी शिथिल नहीं करता है, (43) यह संकल्प शक्ति का ही प्रभाव प्रतीत होता है कि प्रज्ञावान का मन जीवन की अन्तिम दशाओं में भी ऊँचा ही रहता है, जैसे अस्त होते हुए सूर्य की किरणें ऊपर की ओर ही प्रकट होती हैं ( 47 ) । संकल्पवान व्यक्ति उच्च कर्म में अपने आपको लगा देता है, इसलिए उसके प्रयत्न दीर्घ काल तक निष्फल नहीं रह सकते हैं (56)। वह सदैव शक्ति के अनुरूप ही कार्य करता है । अतः वह पराश्रित होने से बच जाता है ( 42 ) । वह इस बात को भली-भाँति समझता है कि मनुष्य के द्वारा किया हुआ कर्म कभी उससे अलग नहीं होता है । अतः वह सदैव सद्कर्मो में ही अपने को लगाता है, असद्कर्मों से अपने को दूर ही रखता है। ( 80 ) । उसको मनुष्य के निष्ठुर कार्यों पर आश्चर्य होता है (79) । वह उचित - अनुचित का विचार करके ही कार्य करता है ( 41 ) । साहस और धैर्य : मूल्यों का प्रेमी व्यक्ति साहसी होता है । वह किसी भी सद्कार्य को करने के लिए इतने साहस का परिचय देता है कि देव भी उसके कार्यों को देखकर प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकता है । उसके लिए कठिन से कठिन कार्य भी सरल हो जाता है ( 50-51 ) । साहसी व्यक्ति धीर होता है । यदि किसी सद्-कार्य का इच्छित परिणाम उत्पन्न होने में बाधाएँ उपस्थित हो जाती हैं, तो धीर व्यक्ति का उत्साह दुगना हो जाता है, उसमें निराशा नहीं आती है ( 52 ) | कवि ठीक ही कहा है कि तब तक ही मेरु पर्वत ऊँचा होता है, तब तक ही समुद्र दुर्लध्य होते हैं, तब तक ही कार्यों में गति कठिन होती है, जब तक धीर व्यक्ति उनको स्वीकार नहीं करते हैं (48) । तब तक ही प्रकाश विस्तीर्ण लगता है, तब तक ही समुद्र प्रति गहरे मालूम होते हैं, तब तक ही मुख्य पहाड़ महान दिखाई देते हैं, जब तक वीरों जीवन-मूल्य ] Jain Education International For Personal & Private Use Only 13 www.jainelibrary.org
SR No.004172
Book TitleVajjalagga me Jivan Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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