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________________ उसके लिए इस जगत में कुछ भी कठिन नहीं होता है (27)। ऐसा व्यक्ति समय पड़ने पर उनके लिए समुद्र भी पार कर जाता है, प्रज्वलित अग्नि में भी प्रवेश कर जाता है, तथा जीवन का बलिदान करने को भी तत्पर रहता है (27)। प्रकृति में ऐसा स्नेह चन्द्रमा और उसके आकाश के द्वारा तथा सागर और चन्द्रमा के द्वारा व्यक्त किया गया है (27-29)। जिस गुणी व्यक्ति को हम स्नेह करते हैं उसको देखने से बहुत ही संतोष प्राप्त होता है (32) । और वह यदि दूर भी चला जाता है, तो भी पास ही अनुभव होता है (30)। इस भौतिक दूरी से स्नेह चलायमान नहीं होता है (36)। वास्तव में यह स्नेह ही मित्रता में परिणत हो जाता है। यह मित्रता पत्थर में की गई रेखा की तरह तथा सूर्य और दिन की आपस में मित्रता की तरह दृढ़ होती है (13,23,24)। इसी दृढ़ता के फलस्वरूप किसी भी स्थान पर किसी भी समय में विपत्ति पड़ने पर भीत पर चित्रित पुतले की तरह मित्र विमुख नहीं होता है (25)। मृदु वचन, शुद्ध संकल्प तथा सद्-कर्म : मूल्यों को जीवन में साकार करने वाले व्यक्ति की वाणी दूसरों को सुख प्रदान करने में सक्षम होती है (8)। ऐसा व्यक्ति नाना संदर्भो में प्रिय वचन ही बोलता है (9) । वह कभी कठोर वचन नहीं बोलता है, यदि उससे कोई कठोर बोलता है, तो भी वह हँसकर मृदु वचनों का ही उसके लिए प्रयोग करता है (11)। इस तरह मृदुता उसके जीवन में साकार हो जाती है । वाणी में मृदुता के साथ-साथ उसके जीवन में शुद्ध संकल्पों का उदय होता है । वह अपने संकल्पों का लोक में ढिंडोरा नहीं पीटता है, बल्कि संकल्पों के सद् परिणाम उत्पन्न होने पर ही लोक उसको जान पाता है (54)। शुद्ध संकल्प के कारण ही वह कार्य को फुर्ती से करता है, प्रारंभ किये गये कार्य को वह किसी viii ] [ वज्जालग्ग में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004172
Book TitleVajjalagga me Jivan Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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