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________________ काव्य रचा गया है उनके लिए नमस्कार तथा जो भी लोग उसको पढ़ते हैं, उनके लिए भी नमस्कार (5)। जनताभिमुखी होने के कारण प्राकृत काव्य एक ऐसा रस उत्पन्न करता है जिससे हमारा मन कभी भरता नहीं है (4)। और उसकी गाथाओं को पढ़ने-सुनने से प्रत्येक व्यक्ति का चित्त प्रसन्नता का अनुभव करता है (3)। परोपकार : जनता में आस्था उत्पन्न होने से व्यक्ति में जो मूल्य-वृत्ति सबसे पहिले उत्पन्न होती है, वह है, पर-उपकार वृत्ति । मूल्यों-सहित व्यक्ति लोक का हित करते हैं (17)। वे असहाय जनों का उद्धार करने में तत्पर रहते हैं (14)। उनके पास यदि सुयोग से सम्पत्ति होती है तो भी वे उसका उपयोग व्याकुल जनों के उद्धार के लिए ही करते हैं (55)। इस तरह से मूल्यों-सहित व्यक्ति सदैव दूसरों का उपकार करता है (12)। कभी भी वह उनके अपकार की इच्छा नहीं करता है (12)। उसके जीवन में परोपकार वृत्ति इतनी सघन हो जाती है कि यदि कोई उसके लिए अप्रिय कार्य भी करता है, तो भी वह समय पड़ने पर उसका उपकार ही करता है (10) । धीरे-धीरे वह एक ऐसा व्यक्ति बन जाता है जिसको देखने से ही लोगों के दुख दूर हो जाते हैं (8) । अतः जिसकी मति उपकार में होती है उसके द्वारा ही पृथ्वी अलंकृत होती है (15) । जो लोग दूसरों का उपकार नहीं करते हैं उनसे कुछ भी लाभ नहीं होता है (90)। स्नेह और मित्रता: जो व्यक्ति मूल्यों का अनुरागी होता है उसके हृदय में गुणियों के प्रति स्नेह का उदय हो जाता है। जब व्यक्ति के हृदय में किसी व्यक्ति, समाज, देश, आदर्श आदि के लिए स्नेह पैदा हो जाता है तो [ viil जीवन-मूल्य ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004172
Book TitleVajjalagga me Jivan Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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