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भारत से कई विद्वान विदेशों में धर्म का प्रचार-प्रसार करने गये। उन्हें प्रारम्भिक सफलता भी मिली। उनके अनगिनत भक्त भी बने, पर कुछ ही समय में उनके अप्रामाणिक जीवन के कारण उनका प्रभाव समाप्त हो गया। किसी ने ठीक ही कहा है कि आज के युग में भक्ति बढ़ी है, पर, नैतिकता घटी है। और, कुछ ही समय में नैतिकता के अभाव में भक्ति का स्थान अवमानना एवं विद्रोह ले लेते हैं । सारांश यह है कि मूल्य-रहित कोई व्यक्ति अथवा समाज अपनी पूर्ण परिणति और प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सका।
भारतीय और विशेष रूप से जैन परम्परा कर्म-प्रधान और गुण-मूलक है । पर, कर्म-सिद्धान्त नियतिवाद का पर्याय नहीं है। स्वेच्छा और पुरुषार्थ से व्यक्ति कर्मों के परिणामों को बदल सकता है। उसके लिए उचित जीवन मूल्य और प्राचरण आवश्यक हैं। . वज्जालग्गं में सज्जन पुरुष के गुणों का विवेचन किया गया है । सज्जन व्यक्ति कषाय रहित होता है। वह क्रोध नहीं करता और दूसरों का अनिष्ट नहीं सोचता है । दूसरों का दुःख हरता है । मधुरालापी होता है। दूसरों का उपकार करता है । क्षमा उसका बहुत बड़ा गुण है। वह अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता है। प्रात्म-सम्मानी होता है। उसका संकल्प अडिग है । उसका साहस असीमित है। वह धैर्यशील है, अनासक्त है । परिस्थितियां उसको विचलित नहीं करती हैं । इसके विपरीत दुर्जन व्यक्ति वक्री होते हैं और सज्जनता के विपरीत आचरण करते हैं। अच्छे और बुरे जीवन को बहुत ही सरल, सहज और व्यवहारिक रूप में वज्जालग्गं में प्रस्तुत किया गया है । इस पुस्तक में कोई बुद्धि-विलास नहीं है ।
आज के जीवन में इस प्रकार के नैतिक विवेचन की अत्यन्त आवश्यकता है। आज धर्म और व्यावसायिक जीवन में विच्छेद हो गया है । धर्म को अलग और व्यवसाय को अलग माना जाता है और व्यवहार में धार्मिक
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